आवाज द वॉयस /मेरठ
एक स्वास्थ्य आपात स्थिति कभी-कभी हमें दिलचस्प मोड़ पर ला खड़ा करती है. कुछ ऐसा ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में देखने को मिला.एक हिंदू महिला ने एक मुस्लिम मरीज को अपनी किडनी दान की, जबकि एक मुस्लिम व्यक्ति ने एक हिंदू मरीज को किडनी दान किया, ताकि एक दूसरे की जान बचाई जा सके.
शहर के एक अस्पताल में डॉक्टरों की एक टीम ने अपने प्रियजनों की जान बचाने के लिए किडनी आदान-प्रदान सौदे में एक हिंदू और एक मुस्लिम परिवार के मरीजों के करीबी रिश्तेदारों के साथ दो लोगों की जान बचाई.
भारत के एक गैर-मेट्रो शहर में इस दुर्लभ प्रत्यारोपण के लिए नुमिता अस्पताल के डॉक्टरों को हर तरफ से सराहना मिल रही है.अमरोहा के अफसर अली गुर्दे की विफलता से पीड़ित थे, जबकि उनके भाई अकबर अली अपनी एक किडनी दान करने के लिए तैयार थे, लेकिन यह बेमेल था.
वहीं मोदीनगर के अंकुर मेहरा भी उसी स्थिति में थे, जबकि उनकी पत्नी अनीता मेहरा अपनी किडनी दान करने के लिए तैयार थीं. मगर उनका ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो रहा था. किडनी डोनर के डेटाबेस से पता चला कि अनीता की किडनी बचा सकती है. अफसर अली का जीवन जबकि अकबर की जिंदगी अंकुर की मदद से बच सकती है.
मेरठ के एक अस्पताल में किया गया एक दुर्लभ गुर्दा प्रत्यारोपण आम लोगों और चिकित्सा बिरादरी के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है.एक साथ चार गुर्दा ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाले डॉक्टरों में डॉ. संदीप कुमार गर्ग, डॉ. शालिनी शर्मा और डॉ. शरत चंद्र.
अस्पताल अब तक 250किडनी ट्रांसप्लांट कर चुका है.डॉक्टरों का कहना है कि जब किसी मरीज की किडनी काम करना बंद कर देती है, तो उसे या तो लगातार डायलिसिस से गुजरना पड़ता है या फिर वह किडनी ट्रांसप्लांट करवा सकता है.
अफसर और अंकुर को जहां एक नई जिंदगी मिली है, वहीं उनके परिवार वाले मुस्कुरा रहे हैं और एक जैसा महसूस कर रहे हैं.उल्लेखनीय बात यह कि दोनों परिवार अलग-अलग धर्मों से आते हैं, फिर भी जीवन बचाने की आवश्यकता ने उनके मतभेदों को धुंधला कर दिया और मानवता के रिश्ते को मजबूत किया.
डॉ संदीप गर्ग ने कहा कि दोनों परिवारों का यह कदम काबिले तारीफ और सामाजिक समरसता का संदेश है.भारत में, अंगों की बिक्री पर प्रतिबंध है और अंग दान परोपकारी है. अंग दान का मूल्यांकन एक बोर्ड द्वारा किया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि क्या कोई अवैध सौदा या जबरदस्ती तो नहीं है.
साभार: आवाज द वॉइस