पैगंबर मुहम्मद साहब का औरतों के समानता को लेकर क्या था नजरिया ?

वसीमा ख़ान। ख़ुदा के प्यारे रसूल हज़रत पैग़म्बर मोहम्मद साहब की पैदाइश उस दौर में हुई, जब अरब जगत में आडंबर, कर्मकांड, सामाजिक बुराइयां और अनेक कुरीतियां, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा और नवजात बच्चियों की हत्याएं आम थीं.

उस जहालत भरे दौर में लड़कियों की पैदाइश को एक समाजी शर्म और तौहीन माना जाता था.लोग बच्चियों की पैदा होते ही हत्या कर देते थे.अरब सरज़मीं पर मौजूद इन बुराइयों के ख़िलाफ़ पैग़म्बर मोहम्मद ने सबसे पहले अपनी आवाज़ उठाई.

जब वे इस राह पर निकले, तो उनकी राह में तरह-तरह की मुश्किलें पैदा की गईं, लेकिन फिर भी वे बिना किसी परवाह के आगे बढ़ते चले गए.

इंसानियत और ‘एकेश्वरवाद’ का पैगाम देने वाले रसूल पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद, समाज में महिलाओं को सम्मान एवं अधिकार दिए जाने की हमेशा पैरोकारी करते रहे.उन्होंने बच्चियों की पैदाइश और उनकी परवरिश को जन्नत में दाख़िल होने का ज़रिया क़रार दिया.

मोहम्मद साहब, औरतों के प्रति किसी भी तरह के भेदभाव के ख़िलाफ़ थे.उन्होंने औरतों के लिए समानता की वकालत की.आज से सदियों पहले ही उन्होंने लड़कियों को जायदाद में मिल्कियत का हक़ दे दिया था.

पैग़म्बर साहब ने हमेशा अपने किरदार और बर्ताव से इंसानों को तालीम दी कि सभी इंसान एक समान हैं.एक ही ईश्वर की संतान हैं.लिहाज़ा सभी से समानता का बर्ताव करो.किसी के साथ भेदभाव न करो.सभी मिल-जुलकर, भाईचारे के साथ रहो.

पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद की वह आला शख़्सियत थी, जिन्होंने हमेशा सच बोला और सच का साथ दिया.यहां तक कि उनके दुश्मन भी उन्हें सच्चा मानते थे.अपने कट्टर से कट्टर दुश्मनों के साथ पैगम्बर साहब का बर्ताव हमेशा अच्छा होता था.

ज़िंदगी का ऐसा कोई भी पहलू नहीं जिसे बेहतर बनाने, अच्छाई को तस्लीम करने के लिए मोहम्मद साहब ने कोई पैग़ाम न दिया हो.उनकी सभी बातें इंसानों को सच की राह दिखाती हैं.

उनके दुश्मनों और दोस्तों दोनों ने मोहम्मद साहब को ‘‘अल-अमीन’’ और ‘‘अस-सादिक़’’ यानी विश्वसनीय और सत्यवादी स्वीकार किया है.हज़रत मोहम्मद साहब का पैग़ाम है कि‘‘कोई इंसान उस वक़्त तक मोमिन (सच्चा मुसलमान) नहीं हो सकता, जब तक कि वह अपने भाई-बन्दों के लिए भी वही न चाहे जितना वह अपने लिए चाहता है.’’

उन्होंने झूठी तारीफ़, गरीबों को हीन भावना से देखने, समाज के कमज़ोर तबक़ों पर ज़ुल्म करने की हमेशा मुख़ालिफ़त की.मोहम्मद साहब ने जिस इस्लाम मज़हब की नींव डाली, वह उस दौर में काफ़ी तरक़्क़ीपसंद और उदार था.एकाधिकार (इजारा-दारी), सूदखोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर कब्जा कर लेने, जमा’ख़ोरी, बाज़ार का सारासामान ख़रीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना, इन सब कामों को इस्लाम ने ग़ैरकानूनी माना है.

इस्लाम में जुआ और शराब को भी ग़लत माना गया है.जबकि शिक्षा-संस्थाओं, ‘इबादत-गाहों तथा अस्पतालों की मदद करने, कुएँ खोदने,अनाथालय स्थापित करने को अच्छा काम माना है.

पैग़म्बर-ए-इस्लाम मोहम्मद साहब ने फ़रमाया है कि ‘‘तुम ज़मीन वालों पर रहम करो, तो अल्लाह तआला तुम पर भी रहम बरसाएगा.’’ ख़ुदा के इस प्यारे रसूल ने सारी दुनिया को इंसानियत, समानता और भाईचारे का पैग़ाम दिया.पैगम्बर साहब ने इंसानों को ज़िंदगी जीने का एक नया तरीक़ा और बेहतर सलीक़ा बताया.लोगों को सही रास्ते पर चलने की तालीम दी.पैगम्बर मोहम्मद ने समूची इंसानियत को मुक्ति और मुहब्बत का पैग़ाम दिया.

अगर पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद साहब की तालीमों पर विचार किया जाए, तो दो बातें उनमें सबसे अहम हैं.पहली, मोहम्मद साहब की शिक्षाएं किसी एक मुल्क या मज़हब के लिए नहीं हैं, वे सबके लिए हैं.

सारी दुनिया और पीड़ित मानवता के लिए हैं.दूसरी, उनकी शिक्षाएं आज से सदियों साल पहले जितनी प्रासंगिक थीं, वे आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं.ज़रूरत उन शिक्षाओं को सही तरह से समझने और उन पर ईमानदारी से अनुसरण करने की है.

साभार: आवाज द वॉइस

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