मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
पंजाब की बड़ी मुस्लिम आबादी वाला मलेरकोटला सेना के झंडे और बैज निर्माण के लिए देशभर में जाना जाता है. मगर अब यह खास वजह से सुर्खियों मंे है. यहां तकरीबन हर घर में तैयार हो रहा तिरंगा हैदराबाद, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, असम, महाराष्ट्र में फहराया जाएगा. जैसे-जैसे स्वतंत्रता दिवस करीब आ रहा है, यहां तिरंगा झंडा बनने और सप्लाई होने की प्रक्रिया तेज हो गई है. भारत सरकार ने ‘हर घर तिरंगा अभियान’ के तहत 13 से 15 अगस्त तक सभी देश वासियों को अपने घर पर तिरंगा लगाने का आहवान किया है. इसको लेकर देशभर में भारी उत्साह है.
ऐसे में अचानक तिरंगे की मांग में भारी उछाल आ गया है. इसे देखते हुए गुजरात सहित देश के विभिन्न हिस्सों में तिरंगा बनाने और सप्लाई का काम अचानक बढ़ गया है. एक आंकड़े के अनुसार, तिरंगा की मांग में 80 फीसदी से भी अधिक का उछाल आया है.
कई कंपनियां या संगठन जो कुछ और उत्पाद का निर्माण करते हैं. वह इस वक्त तिरंगा निर्माण में लगे हैं. बिल्कुल वैसे, जब कोरोना महामारी के चरम पर होने के दौरान संगठन और कंपनियां मास्क और सेनेटाइजर बनाने लगी थीं.
पंजाब के मलेरकोटला के मुसलमान सेना के झंडे और बैच निर्माण के लिए जाने जाते हैं, पर इस समय रितंगा बनाने की वजह से इनकी अलग पहचान बन गई है. तिरंगा की मांग पूरी करने के लिए मुस्लिम बाहुल्य शहर मालेरकोटला के घर-घर में तिरंगा बनाने के लिए मुस्लिम परिवार दिन रात जुटे हुए है.
यहां बने तिरंगा असम, जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भेजे जा रहे हैं. अब तक तकरीबन एक लाख झंडे मालेरकोटला शहर से भेजे जा चुके हैं, जबकि अभी भी लाखों झंडों के आर्डर बाकी हैं. इन मुस्लिम परिवारों का कहना है कि उन्हें बेहद गर्व है कि उनके हाथों से बने तिरंगे देश भर में फहराए जाएंगे.
परिवारों के साथ लेबर भी कर रहे मशक्कत
तिरंगे की मांग ने इतना जोर पकड़ लिया है कि झंडे व सेना के बैज बनाने का कारोबार करने वाली एनएन एम्ब्रायडरी कंपनीने भी राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण शुरू कर दिया है. इसके सीईओ मोहम्मद नसीम के मुताबिक, पहले स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस सहित सैन्य व सुरक्षा बल से ही तिरंगे के आर्डर आते थे. इस बार हर घर तिरंगा अभियान ने ऐसा समां बांधा है कि तिरंगा झंडे की मांग में भारी उछाल आ गया है.
इसलिए उनके पारिवारिक सदस्यों के अलावा दूसरे कारीगर भी दिन रात झंडा बनाने में जुटी है, ताकि आर्डरों को समय पर पूरा किया जा सके. तिरंगा झंडा बनाने के लिए कपड़े की मांग बढ़ी है. इसकी वजह से कपड़े के दाम में वृद्धि हो गई है. ऐसे में उनका मुनाफा कई फीसद कम हो गया है. बावजूद तिरंगा बनाने में उनका जोश कम नहीं हुआ है. वह कहते हैं हर समय मुनाफा नहीं चलता. देश हित मंे कुर्बानियां भी देनी चाहिए.
झंडे पर कढ़ाई
सेना की गाड़ियों और सैन्य अधिकारियों एवं सेना भवन में लगे झंडे आपने जरूर देखे होंगे. उसपर सिल्वर, गोल्डन एवं अन्य रंगों के धागों की कढ़ाई होती है. मलेरकोटला वाले इसका निर्माण विशेष तौर से सेना के लिए करते हैं.पिछले करीब एक दशक से कढ़ाई का काम कर रही शबीना व रेशमा ने कहा कि मालेरकोटला जैसा कढ़ाई का काम किसी अन्य जगह पर नहीं होता है.
इस वजह से हर कोई यहां कढ़ाई करवाने आता है. झंडा पर कढ़ाई करने का रुझान बेहद पुराना है. उनके पूर्वजों के समय से यह कार्य चला आ रहा हैं. पीढ़ी दर पीढी इस कार्य में जुटे हैं. वह टेरीकोट, साटन व खादी के कपड़े पर झंडे बनाते है. इन पर कढ़ाई करते हैं. इस बार हर घर तिरंगा अभियान के तहत बढ़िया काम मिला है.
देशप्रेम और देश की सेवा साथ-साथ
कारीगर ताहिर मोहम्मद का कहना है कि उनके लिए देश प्रेम व देश की सेवा सर्वोपरि है. तिरंगा बनाना उनके लिए गौरव की बात है. वह सेना के बैज बनाने का कार्य अधिक करते हैं. इस बार तिरंगा बनाने का काम पिछले वर्षों के मुकाबले काफी अधिक है.
देश भर के विभिन्न राज्यों से आर्डर मिल रहे हैं. इन्हें पूरा करने के लिए दिन-रात काम करना पड़ रहा है. पिछले 10 दिन से वह इस कार्य में लगे हैं . 10 अगस्त तक सारे काम निपटाने है, ताकि विभिन्न राज्यों तक 12 अगस्त तक आर्डर पहुंच जाए.
अलग-अलग आकार का तिरंगा
सुनामी गेट रोड के कारोबारी मोहम्मद सलीम व मोहम्मद अशरफ ने बताया कि कढ़ाई वाले तिरंगा झंडा बनाने में समय लगता है. एक दिन में 20-25 कढ़ाई वाले झंडे ही बन पाते हैं. इनकी कीमत 400 रुपये से 750 रुपये के बीच है. मांग अधिक होने से ओवरटाइम बढ़ गया हैं. . घरों पर फहराने के लिए 2 गुणा 3 वर्ग फीट, सरकारी कार्यालयों व अन्य जगह के लिए 6 गुणा 4 वर्ग फीट, मैदानों के लिए 8 गुणा 12 वर्ग फीट का तिरंगा बनाया जा रहा है.
साभार: आवाज द वॉइस