रविश कुमार: यह एक ऐसी किताब है, जिसे पढ़ कर गर्व हो रहा है कि मैंने यह किताब पढ़ी है!

यह एक ऐसी किताब है, जिसे पढ़ कर गर्व हो रहा है कि मैंने यह किताब पढ़ी है। जंगे आज़ादी के अज़ीम सिपाही मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की तक़रीर जिस्म में झुरझुरी पैदा करती है। कोलकाता के मजिस्ट्रेट के सामने दी गई उनकी तक़रीर के एक-एक शब्द पवित्रता से भरे हैं, जिन्हें पढ़ कर आप छू लेने का फ़र्ज़ अदा करते हैं। आज़ादी का ख़्वाब कितना सच्चा था। उन पर ईमान था।

मौलाना की तक़रीर को ज़रूर पढ़िएगा और हो सके तो लोगों को सुनाइयेगा।
मोहम्मद नौशाद ने मौलाना आज़ाद की तक़रीर ‘क़ौल-ए-फ़ैसल’ का हिन्दी अनुवाद कर बेहद शानदार काम किया है। आज मेरा दिल इस बात के लिए शुक्रगुज़ार हो रहा है कि आज़ाद साहब के एक-एक शब्द के दर्द और उत्साह से होकर गुज़रा हूँ।

जब तक उनकी तक़रीर पढ़ता रहा, बीसवीं सदीं के हिन्दुस्तान के एक लाडले की आँखों से उस मोहब्बत को देखता रहा, जो केवल हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए समर्पित थी। उन आँखों में कोई दूसरा महबूब न था। बहुत शुक्रिया नौशाद । हमने कुछ समय पहले इस किताब की सूचना भर दी थी, आज इसे पढ़ लिया। सेतु प्रकाशन ने छापी है और एमेज़ान वग़ैरह पर है।

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