अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | यूपी में सरकारी मशीनरी और चुनाव आयोग योगी सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। इसका सबसे बड़ा सबूत सपा नेता आज़म खां का मताधिकार छीना जाना है। आज़म खां के मताधिकार को खत्म करने का मामला सामने आया है। जबकि खतौली के भाजपा विधायक रहे विक्रम सैनी का मताधिकार बरकरार है। इस मामले में यूपी सरकार और चुनाव आयोग की भूमिका निष्पक्ष नहीं है।
नियमानुसार, खतौली के भाजपा विधायक रहे विक्रम सैनी का भी मताधिकार उसी अधिनियम के तहत खत्म किया जाना चाहिए, जिसके तहत सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खां का मताधिकार खत्म किया गया है।
रामपुर से भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने बुधवार को एसडीएम सदर और निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी रामपुर विधानसभा क्षेत्र निरंकार सिंह से मांग की थी कि आजम खां का वोट देने का अधिकार रद्द किया जाए. जिस पर पर विचार करते हुए रामपुर विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी ने आज़म खां का नाम वोटर लिस्ट से काट दिए जाने का आदेश दिया।
यूपी में सपा नेता और पूर्व मंत्री आजम खां को 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान हेट स्पीच देने के मामले में पिछले दिनों रामपुर की एम पी/एमएलए कोर्ट ने 3 साल की सजा सुनाई थी और इसके कारण उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी। आज़म खां के मामले में इतनी जल्दी दिखाई गई थी कि उनको सजा सुनाए जाने के दूसरे दिन ही उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई।
कोर्ट ने आज़म खां को उच्च अदालत में जाने का समय दिया था, लेकिन यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार के इशारे पर आज़म खां की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी। जबकि इसके पहले मुज़फ्फरनगर की एमपी/ एमएलए कोर्ट ने खतौली के भाजपा विधायक विक्रम सैनी और लगभग 2 दर्जन से अधिक लोगों को 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों का दोषी ठहराया था और उनको 2 साल की सजा सुनाई थी। लेकिन विक्रम सैनी के मामले को दबा दिया गया और उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द नहीं की गई।
रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने जब यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को इस संबंध में पत्र लिखा और उनके काम-काज के तरीके पर सवाल खड़ा किया तो विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि किसी विधायक को सजा सुनाए जाने पर उसकी विधानसभा सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है।
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के ऊपर जब जयंत चौधरी ने उंगली उठाई, तो विधानसभा अध्यक्ष ने अपना बचाव किया और विधानसभा सचिवालय से विक्रम सैनी के मामले की रिपोर्ट तलब की। विक्रम सैनी का मामला सामने आने पर विक्रम सैनी की भी सदस्यता रद्द कर दी गई।
इसके बाद चुनाव आयोग ने रामपुर में आज़म खां की रिक्त हुई सीट पर विधानसभा उपचुनाव कराने का ऐलान कर दिया। इसी बीच आज़म खां अपने मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने आज़म खां के मामले की सुनवाई करते हुए यूपी सरकार और चुनाव आयोग को जमकर फटकार लगाई।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की एक भी नहीं सुना, तब चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम वापस ले लिया। आजम खां को 15 नवम्बर तक ज़मानत मिल गई, लेकिन अदालत में इसके बाद हुई सुनवाई में कोई राहत नहीं मिली, जिसके चलते फिर उपचुनाव की अधिसूचना जारी की गई। आज़म खां की ज़मानत की अवधि बढ़ा दी गई है।
इसी बीच रामपुर और खतौली में विधानसभा और मैनपुरी में लोकसभा उप-चुनाव कराए जाने की चुनाव आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव अधिसूचना जारी कर दिए जाने के बाद नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो गई। भाजपा ने रामपुर में आकाश सक्सेना को उम्मीदवार बनाया है। जबकि सपा ने आसिम राजा को उम्मीदवार घोषित किया है। दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों ने गुरुवार को अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। आसिम राजा के नामांकन पत्र दाखिल करने के समय उनके साथ आज़म खां मौजूद रहे। जबकि आकाश सक्सेना के साथ पूर्व मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी मौजूद रहे।
आज़म खां के विरुद्ध जितने भी मामले चल रहे हैं, इनको आकाश सक्सेना ने ही उठाया है, इसीलिए का भाजपा ने इनको उम्मीदवार बनाकर ईनाम दिया है। आकाश सक्सेना आज़म खां के कट्टर विरोधी हैं। आज़म खां की विधानसभा सदस्यता रद्द होने के बाद भी आकाश सक्सेना आज़म खां के पीछे पड़े हुए हैं। आज़म खां उम्मीदवार नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद आकाश सक्सेना आज़म खां का पीछा कर रहे हैं और उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अब उनका मताधिकार भी खत्म करा दिया है।
आकाश सक्सेना को यह लगता है कि आज़म खां के रहते, वह चुनाव नहीं जीत पाएंगे। आज़म खां चुनाव के दौरान घर में कैद रहें और वह नहीं निकलें, इसीलिए उनका मताधिकार खत्म करवाया है। मताधिकार न रहने से आज़म खां चुनाव के वक्त घर से निकल नहीं पाएंगे, ऐसी स्थिति में उनके वोटर भी प्रभावित होंगे तथा वह जीतने में कामयाब हो जाएंगे।
यूपी सरकार और चुनाव आयोग के इशारे पर आज़म खां का मताधिकार खत्म कर दिया गया है। चुनाव आयोग और सरकारी मशीनरी योगी आदित्यनाथ की सरकार के इशारे पर काम कर रही है। भाजपा उम्मीदवार आकाश सक्सेना ने रामपुर के एसडीएम सदर और निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी रामपुर विधानसभा क्षेत्र निरंकार सिंह से बुधवार को मुलाकात की और उनसे आज़म खां का वोट देने का अधिकार रद्द करने की मांग की।
निरंकार सिंह ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के तहत आज़म खां का नाम वोटर लिस्ट से हटाए जाने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद अब आज़म खां को वोट देने का अधिकार नहीं होगा और उनका मताधिकार खत्म हो गया है। जबकि भाजपा के खतौली से विधायक रहे विक्रम सैनी का मताधिकार अभी तक खत्म नहीं किया गया है और उनको वोट देने का अधिकार बरकरार है।
अदालत द्वारा आजम खां और विक्रम सैनी को सजा सुनाए जाने के बाद दोनों की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई है, तो केवल आज़म खां का मताधिकार क्यों छीना गया है, विक्रम सैनी का क्यों नहीं? यह सवाल चुनाव आयोग और यूपी सरकार दोनों को कठघरे में खड़ा करता है और दोनों की निष्पक्षता संदेह के घेरे में है? आज़म खां और विक्रम सैनी की विधानसभा सदस्यता रद्द इसलिए की गई है, क्योंकि दोनों को ही अदालत ने दोषी पाया है और उन्हें सजा सुनाई है।
अब ऐसे हालात में आज़म खां पर जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 लगाकर उनका मताधिकार खत्म किया गया है, तो विक्रम सैनी पर यह अधिनियम क्यों नहीं लगाया गया है और उनका मताधिकार क्यों खत्म नहीं किया गया है? यह दोहरा मापदंड क्यों अपनाया गया है? इसका जवाब यूपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार और चुनाव आयोग को देना चाहिए? यह देखकर लगता है कि चुनाव आयोग और यूपी सरकार की भूमिका अब इस मामले में निष्पक्ष नहीं है।
साभार: इंडिया टुमारो