ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
यदि कोई व्यक्ति दृढ़ निश्चय कर ले तो वह क्या नहीं कर सकता? इसके लिए एक ही शर्त है मेहनत. मेहनत की जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की रहने वाली शमा परवीन ने भी कुछ ऐसा ही किया है. उन्होंने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में बीएससी गणित में टॉप किया और स्वर्ण पदक प्राप्त किया. बीएससी गणित की परीक्षा में 89.80% अंक प्राप्त किए हैं.
रिक्शा चालक की बेटी को मिला गणित में गोल्ड मेडल
शमा परवीन बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उसके पिता रिक्शा चलाते हैं. खुद की कमाई से परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो रहा था. लेकिन उन्होंने अपनी बेटी का पेट काटकर पढ़ाया. ताकि कुछ बन सके. आज बेटी ने अपना सपना पूरा कर लिया है.
राज्यपाल आनंदी पटेल के हाथों जब बेटी को गोल्ड मेडल मिला तो वह अपनी आंखों में आंसू बहने से नहीं रोक पाईं. उसके आंसू बेटी की सफलता की कहानी कह रहे थे. बेटी की सफलता ने आज पिता का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया.
शमा परवीन कहती हैं कि मेरे पिता ने मुझे मेहनत और ईमानदारी की सीख दी. उन्होंने अपना सामान गिरवी रख दिया और मेरी पढ़ाई की फीस जमा कर दी. वह आगे कहती हैं, “मेरे पिता को मुझसे बहुत उम्मीदें थीं.” आज मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने में सफल रहा हूं. मैंने आज जो कुछ भी हासिल किया है वह मेरे पिता की कड़ी मेहनत का नतीजा है.
एक आंख से नहीं देख सकती शमा
हालांकि शमा के लिए सफलता आसान नहीं थी. दरअसल, वह एक आंख से देख नहीं सकती. जिसके चलते लोगों ने उन्हें निशाना बनाया. उसके पिता यूनुन खान बताते हैं कि एक साल की उम्र में मेरी बेटी की एक आंख की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगी थी. जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, उसकी आंखों की रोशनी कम होने लगी.
वह आगे कहते हैं कि मेरी बेटी की एक आंख से रोशनी चली जाने पर पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने ताना मारा था. उसका मजाक उड़ाया. लेकिन न तो उन्होंने और न ही उनकी बेटी ने कभी परवाह की. इसके विपरीत, उन्होंने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया.
नतीजा यह हुआ कि 12वीं पास करने के बाद शमा को घर में रखने के बजाय मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में बीएससी गणित में दाखिला ले लिया. उसकी हर संभव मदद की. ऐसे में शमा ने भी अपनी लगन और मेहनत से पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया है.
पिता ने हमेशा साथ दिया
युनून खान ने बताया कि जब शमा मात्र एक साल की थीं, तभी उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थी. इसके बावजूद उन्होंने अपनी बिटिया के सपनों को उड़ान दी और इसी उड़ान से बिटिया आज आसमान छू रही है.
शमा परवीन पहले भी जिला टॉपर रह चुकी हैं. वह अब आईएएस बनना चाहती है. लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इस राह में सबसे बड़ी बाधा है. वह कहती हैं कि परिवार में सबसे बड़ी होने के कारण छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी भी मुझ पर आ जाती है. वह भी इस जिम्मेदारी को निभाना चाहती हैं.
महिला शिक्षा के बारे में उनका कहना है कि हर माता-पिता को अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलानी चाहिए. शिक्षा ही एकमात्र हथियार है. जिससे न केवल हम अपना जीवन सम्मान के साथ जी सकते हैं. बल्कि आप अपने सपने भी पूरे कर सकते हैं.
साभार: आवाज द वॉइस