रवीश कुमार: अदालत की चुप्पी और अदालत की ओर ताकने वालों के नाम

लोकतंत्र की यही ख़ूबी है। अदालत की कार्यवाहियों में देरी से निराशा होती है तो उम्मीद का आखिरी दरवाज़ा भी अदालत ही है। हर तरफ से जब निगाहें थक जाती हैं तब अदालत की तरफ ही उठती हैं।अदालत आत्मा है। आत्मा की अंतरात्मा है। अंतरात्मा में परमात्मा हैं और परमात्मा में सांत्वना कि अभी हम हैं। केवल एक इमारत और उसमें आते-जाते लोगों से अदालत की कल्पना करने वाले भी नहीं जानते कि अदालत किन चीज़ों से बनती है।
बुलडोज़र ने जिस घर को तोड़ा है, उस घर से निकले एक-एक सामान से कोई चाहे तो अदालत की इमारत बना सकता है।आइये मिलकर गिनते हैं कि अदालत की इमारत के लिए किन किन चीज़ों की ज़रूरत होती है। ईंटे, सीमेंट,छड़,रेत,रंग,कीलें,लोहे, दरवाज़ों के लिए जंगल काट कर लाई गई लकड़ियां, बहुत सारी कुर्सियां, कुर्सियों पर रखे जाने वाले गद्दे, सफेद तौलियां, मेज़, मेज़ पर बिछने वाली चमड़े की चादर, कलमदानी, पंखे,बल्ब, ट्यूबलाइट,स्विच बोर्ड,एयरकंडिशन,पीने का ग्लास, ग्लास शीशे का, ग्लास के नीचे का कोस्टर, ग्लास को ऊपर से ढंकने का कोस्टर, पानी रखने का जग, पानी का बोतल, ठंडे पानी और चाय के दूध के लिए फ्रिज, फ्रिज में कुछ पेस्ट्री, खाना गरम करने के लिए माइक्रोवेव, चाय बनाने की मशीन, टी-बैग, ज़रूरी कागज़ात के लिए बहुत सी आलमारियां, टाइपराइटर, कंप्यूटर, लैपटाप, फाइलों के कवर, कवर में लगने वाली रस्सियां, पन्ने और पन्नों को दबाने के लिए पेपरवेट,अदालत में टंगने वाली घड़ी, दीवार पर टंगने के लिए एक कैलेंडर, अदालत के बाहर लगने वाला नोटिस बोर्ड, नोटिस बोर्ड पर लगने वाली जालियां, वकीलों के आने जाने के लिए चौड़े-चौड़े कॉरिडोर,कॉरिडोर में बिछा गलीचा, खिड़कियों पर टंगे पर्दे और ऊपर लगे एग्ज़ास्ट फैन,शोचालय, शौचालय में कमोड। बेसिन और बेसिन के ऊपर डिटॉल साबुन। नाम वाम लिखने के लिए कांसे और पीतल के नेम प्लेट और दरवाज़ें के बाहर कॉल-बेल। दरवाज़े के नीचे डोर-मेट। ठहरिए, एक चीज़ रह गई है। वो हथौड़ा जिसके ठोंकने से आवाज़ आती है आर्डर-आर्डर। एक कठघरा भी तो चाहिए जिसमें हम सब खड़े हैं। हमारा समय खड़ा है।
कुछ चीज़ें छूट गई हों तो हर वो चीज़ इस मलबे से निकल सकती है जिससे जोड़ कर एक अदालत बनाई जा सकती है। संसद की एक इमारत बनाई जा सकती है, न्यूज़ चैनल का हेडक्वार्टर बनाया जा सकता है।अगर हताशा में भी कोई कहता है कि चुप्पी से लगता है कि अदालत नहीं है तो वह गलत है। अदालत है। अगर अन्याय है तो अदालत भी है। जब तक मलबे से ये सारे सामान निकलते रहेंगे, अदालत होने की कल्पना बाकी रहेगी। क्या मैंने कुछ ग़लत कहा…आप योर ऑनर से ही पूछ लें,उनका भी जवाब मिलेगा कि अदालत है।

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