रवीश कुमार
सरकार कभी जवाब नहीं देती है कि इस साल इस महीने कितनों को रोज़गार मिला है? इनके पास किस खाते में पैसा जाना है उसका सिस्टम है लेकिन रोज़गार कितनों को मिला और कितनों का चला गया ये सिस्टम नहीं है।लेकिन नहीं सरकार किसी भी प्रोजेक्ट के समय रोज़गार कितना मिलेगा ख़ूब बताती है। दावा करते समय संख्या की परवाह नहीं करती। यह काम केवल बीजेपी की सरकार नहीं सब करते हैं। या तो सरकारें प्रोजेक्ट लाँच होने के समय झूठ बोलना छोड़ दें कि लाखों को रोज़गार मिलेगा या प्रोजेक्ट लाँच होने के तीन साल तक अध्ययन करें और बताएँ कि कितनों को मिला है।
अगर आप इस रिपोर्ट को देखेंगे तो न सिर्फ़ बीजेपी बल्कि कांग्रेस या दूसरी सरकारों से बेहतर सवाल कर पाएँगे। क्या आम आदमी पार्टी की सरकार बताती है कि दिल्ली में कितनी नौकरियाँ दी गई हैं? एक कि दिल्ली में सरकारी नौकरियाँ और वो भी स्थायी सरकारी नौकरियाँ कितनी दी गई हैं? दूसरा दिल्ली में अस्थायी सरकारी नौकरियाँ कितनी दी गई हैं और तीसरा दिल्ली में चल रही कंपनियों में कितने लोगों को नौकरियाँ मिली हैं? यही सवाल आप पंजाब, झारखंड, बंगाल, महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश की सरकारों से पूछें ।
अगर से मेहनत का काम लगता है तो बिल्कुल न पूछें। इसकी जगह आप कोशिश करें कि राजनीति में इन सबकी बात न हो और धर्म की हो। जैसे तीर्थयात्रा की योजना आ रही है या नहीं या कहीं दीपोत्सव हो रहा है या नहीं। अगर राजनेताओें से राजनीति का काम नहीं हो रहा है, वे अब राजनीति से लोगों को ठग नहीं पा रहे हैं तो कम से कम धर्म का ही काम करें। चीजों को बर्बाद करने में थोड़ी मेहनत कीजिए। ताकि दुनिया भी देखें कि आप लोगों ने लोकतंत्र और राजनीति को बर्बाद करने में कितनी मेहनत की है। केवल आपको बेवकूफ ही नहीं बनाया गया है बल्कि आपने भी बेवकूफ बनने के लिए काफ़ी मेहनत की है।
राजनीति में धर्म का बढ़ता इस्तमाल इस बात का प्रमाण है कि भारत के युवाओं की राजनीतिक गुणवत्ता सड़ चुकी है। कुछ भी करें इन युवाओं से दूर रहे। अगर इनमें राजनीति समझ होती तो रोज़गार को ढंग से मुद्दा बना पाते और सरकारों को जवाबदेही के लिए मजबूर कर पाते। बाक़ी जो प्रौढ़ हैं बुजुर्ग हैं उनके किया ही कहने।
एक बार इसे देख लीजिएगा।