रवीश कुमार: नए निवेशकों से भर गया है शेयर बाज़ार, विदेशी निवेशक क्यों भाग रहे?

रवीश कुमार

1।  खुदरा निवेशकों और उसमें से भी नए निवेशकों के भरोसे शेयर बाज़ार में गति दिखाई दे रही है। तमाम रिकार्ड बताते हैं कि अनेकानेक कारणों से विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय बाज़ार से पैसा निकालना शुरू कर दिया है और काफी पैसा निकाल भी चुके हैं।दूसरी तरफ, नए और घरेलू निवेशक पैसा लगाने लगे हैं। जिसके कारण बाज़ार में उछाल तो है लेकिन क्या यह अच्छा संकेत है?

इंडियन एक्सप्रेस में HDFC AMC के कार्यकारी निदेशक प्रशांत जैन का बयान छपा है कि “मैंने अतीत में दो या तीन बार देखा है कि बाज़ार में खुदरा निवेशकों की भागीदारी का बहुत ज़्यादा बढ़ना अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि शेयर बाज़ार में लंबे समय के निवेश को लेकर बहुमत यदा-कदा ही सही होता है।” मेरे हिसाब से इसका मतलब यह होता है कि जो लोग पैसा डाल कर भूल जाते हैं, उनमें से ज़्यादातर का डूब जाता है। उन्हें पता नहीं होता कि किस समय पर पैसा निकाल लेना चाहिए। अगर डूबता नहीं भी है तो पैसा छोड़ देने से पैसा बनता नहीं है। जस का तस रह जाता है। प्रशांत जैन का कहना है कि “बैंकों में लोगों ने जितना पैसा रखा है, उसका 30 प्रतिशत शेयर बाज़ार में घूमने लगा है। मुझे नहीं लगता कि यह वो संख्या है जिससे किसी को राहत महसूस करनी चाहिए। “

पिछले छह महीने में भारत का शेयर बाज़ार काफी बदल गया है। विदेशी निवेशकों ने 1.65 लाख करोड़ के शेयर बेच दिए हैं। उनके बाद जो हाई नेटवर्थ निवेशक हैं जो दो लाख रुपये से ज़्यादा निवेश करते हैं, इन लोगों ने भी अपना हिस्सा बेच दिया है। मैं कोई बाज़ार का जानकार नहीं हूं लेकिन बीच-बीच में सीखने का प्रयास करता हूं। इस विश्लेषण से मुझे यही समझ आया कि अनुभवी और समझदार लोग बाज़ार से निकल गए हैं। उनके निकलने से बाज़ार गिरे न इसलिए घरेलू संस्थागत निवेशक DII ने पिछले छह महीने में दो लाख करोड़ का निवेश किया है। इसके कारण निफ्टी और सेंसेक्स का स्तर भी काफी बढ़ा है।

प्रशांत जैन की बात को ध्यान में रखना चाहिए। मैं नहीं कह रहा कि बाज़ार से डर जाएँ लेकिन, सतर्क रहने में कोई बुराई नहीं है।इंडियन एक्सप्रेस के जार्ज मैथ्यू और संदीप सिंह की रिपोर्ट के आधार पर मैं हिन्दी में लिख रहा हूं क्योंकि कोविड के दो वर्षों के दौरान बड़ी संख्या में लोगों ने अपना पैसा बैंकों से निकाल कर शेयर बाज़ार में लगाया है। बैंकों में ब्याज दर काफ़ी कम है। दूसरी तरफ़, अमरीका में ब्याज दर बढ़ा तो विदेशी निवेशक अपना पैसा वहाँ ले जा रहे हैं। इसका मतलब यही है कि अनुभवी खिलाड़ी भी यही चाहता है कि बैंकों में ब्याज दर ज़्यादा मिले ताकि उसका पैसा सुरक्षित रहे।कहीं ऐसा न हो कि समझदार लोग अपना पैसा बनाकर एक असुरक्षित बाज़ार नए लोगों के लिए छोड़ गए हैं।

एक्सप्रेस ने बताया है कि मार्च 2015 में खुदरा निवेशकों की भागीदारी  6.12 प्रतिशत थी जो बढ़ कर मार्च 2022 में 7.42 प्रतिशत हो गई है। तब खुदरा निवेशकों का 5.26 लाख करोड़ बाज़ार में लगा था, जो बढ़कर 19.16 लाख करोड़ हो गया है। प्राइम डेटाबेस के प्रणब हल्दिया का कहना है कि कोविड के दो वर्षों के दौरान लोगों ने शेयर बाज़ार में पैसे लगाने शुरू किए हैं, जो अभी तक जारी है। पिछले दो वर्षों में बाज़ार में खुदरा निवेशकों की भागीदारी ज़बरदस्त तरीके से बढ़ी है। 31 मार्च 2022 तक डीमेट खातों की संख्या 8.97 करोड़ हो गई। मार्च 2020 में करीब सवा दो करोड़ थी।इस संख्या से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कितनी तेज़ी से लोगों ने बैंकों से पैसे निकाल कर शेयर बाज़ार में लगाए हैं।दूसरी तरफ उतनी ही तेज़ी से अनुभवी लोग पैसा निकाल कर ब्याज दर की तलाश में अमरीका जा रहे हैं। वहां ब्याज दर में बढ़ोत्तरी हुई है। तो जो अनुभवी है, वो निकाल कर रहा है क्योंकि ब्याज दर अधिक मिल रहा है। वहीं जो नया नया है, ब्याज दर नहीं मिलने के कारण शेयर बाज़ार में जा रहा है।

इस तरह से शेयर बाज़ार में घरेलू निवेशकों की भागीदारी सर्वकालिक रुप से अधिक है। 31 मार्च 2022 को 23.34 प्रतिशत हो गई है और विदेशी निवेशकों की भागीदारी घट कर 20.15 प्रतिशत हो गई। सात साल पहले शेयर बाज़ार में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 23.32 प्रतिशत तक पहुंच गई थी और घरेलू निवेशकों का योगदान केवल 18.47 प्रतिशत था। घरेलु निवेशकों में कई प्रकार के किरदार होते हैं। HNI, DII के अलावा खुदरा निवेशक होते हैं।जैसे हम और आप। अगर आप बाज़ार में नए खिलाड़ी हैं तो ध्यान से निवेश करें। नई-नई जानकारी हासिल करते रहें। बाकी भगवान मालिक है।

2। जीएसटी संग्रह की ख़बरें पहले पन्ने पर और पहले नंबर छपी हैं। इस बार जीएसटी संग्रह का नया रिकार्ड बना है। अप्रैल के महीने में 1.67 लाख करोड़ का संग्रह हुआ है। इसमें बिहार का कितना योगदान है? महाराष्ट्र में जहां जीएसटी संग्रह में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं बिहार में जीएसटी संग्रह माइनस दो प्रतिशत रहा है यानी घट गया है। यह बता रहा है कि हिन्दी प्रदेश का एक बड़े राज्य की आर्थिक हालत क्या है। झारखंड ने इस बार वाणिज्य कर की वसूली में 26 प्रतिशत की वृद्धि की है। इसमें जीएसटी और वैध भी शामिल है।

अख़बारों में कहा गया है कि जीएसटी संग्रह में वृद्धि को दो तरह से देखा जा सकता है। पहला, इससे संकेत मिलते हैं कि अर्थव्यवस्था सुधार के रास्ते पर है।दूसरा, लागत मूल्य में वृद्धि के कारण जीएसटी संग्रह बढ़ा है। चीज़ों के दाम काफी बढ़े हैं। जब दाम बढ़ेंगे तो उस पर लगने वाला टैक्स भी बढ़ेगा। महंगाई के कारण जीएसटी का रिकार्ड शानदार है? इस पर इस क्षेत्र को समझने वाले ही बेहतर बता सकते हैं।

एक तीसरा कारण यह है कि जब तक अगला अपना जीएसटी रिटर्न दाखिल नहीं करता है, आप इनपुट क्रेडिट नहीं ले सकते हैं। इस कारण से आप जिससे माल ख़रीदते हैं,उस पर दबाव रहता है कि वह रिटर्न दायर करे, तभी तो आप क्रेडिट ले पाएंगे। यही नहीं जीएसटी टैक्स प्रशासन ने लोगों से काफी सख्ती की है कि वे अपना समय पर रिटर्न भरें। इसमें उनकी भी मेहनत है। इस बार रिटर्न भरने वालों की संख्या भी ज़्यादा है। ऐसा लग रहा है कि इस बार ठीक से व्यापारी वर्ग योगदान कर पा रहे हैं। उनके पास टैक्स से बचने के रास्ते बंद हो रहे हैं। यह काफ़ी अच्छा है।

3। EMI बढ़ने लगी है। भारतीय रिज़र्व बैंक की तरफ़ से भी संकेत मिल रहे हैं कि ब्याज दरों में वृद्धि हो सकती है। मध्यम वर्ग कितनी मार झेलेगा, यह तो वही जानता है।

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