रवीश कुमार: क्या दुनिया मंदी की चपेट है, अगर है तो रहे, भारत मंदिर-मस्जिद मुद्दे की चपेट में है

रवीश कुमार

यूरोप और अमरीका में मंदी आने की चर्चा शुरू हो चुकी है।अगर हम हर ग्लोबल संकट से प्रभावित हैं, तो ज़ाहिर है, इससे भी होंगे ही। पर किस तरह से होंगे, एक आम आदमी को अपनी बचत के साथ किस तरह की सतर्कता बरतनी चाहिए, इन सब पर कोई बात नहीं है। कोई तैयारी नहीं है। ऐसी बातों को लेकर जनता को अंधेरे में रखना ठीक नहीं होता है क्योंकि आर्थिक संकट जितना छिपा लिया जाए, उसे जब आना होता है तब सबसे सामने ही आता है।

दूसरा, भारत की इतनी तरक़्क़ी के दावों के बाद भी आर्थिक असमानता की सच्चाई बहुत भयानक है। अब तो यहाँ हज़ारों बड़ी कंपनियाँ हैं। बुनियादी ढाँचे हैं। इसके बाद भी अगर महीने में 25,000 कमाने भर से कोई टॉप टेन में आ जाए तो क्या ही कहा जाए। क्या हम अपने समाज को ठीक से जानते भी हैं कि 25000 से कम कमाने वाला कितना कम कमाता होगा, कैसे जीवन जीता होगा?

मीडिया और सोशल मीडिया से पता नहीं चलता है। हम लोग लिखने के लिए लिखते हैं कि महंगाई मुद्दा है, लेकिन अपने फ़ेसबुक पेज पर न के बराबर ही पोस्ट देखा है जिसमें लोग लिख रहे हों कि वे महंगाई से कैसे जूझ रहे हैं। मुमकिन है, सम्मान की बात हो लेकिन महंगाई तो सभी पर आई है। केवल इस एक महीने में नहीं आई है, बल्कि पिछले कई महीनों से है। इस दौरान लोगों की क्या हालत हुई है, कुछ पता नहीं है। फ़ेसबुक पर लाखों लोग कौन हैं, जो फोलोअर बने घूम रहे हैं, क्या उनके जीवन में कुछ भी नहीं घट रहा, जिसे ईमानदारी से बताया जा सके?

इसके बाद भी मेरा मानना है कि आर्थिक असामनता या महंगाई का संबंध जनता के राजनीतिक विवेक से नहीं है। जनता का राजनीतिक विवेक ख़त्म हो चुका है। इसकी जगह पर धार्मिक विवेक ने ले ली है। जनता के भीतर यह धार्मिक विवेक व्यक्ति स्तर पर मौजूद था, जिसके सहारे वह निजी जीवन और कभी-कभी सामूहिक उत्सवों में भागीदारी करती रहती थी, लेकिन उसकी यही आस्था राजनीतिक रुप ले चुकी है। इसे समझने की ज़रूरत है।

हम लोग यह बात मज़ाक़ के तौर पर कह देते हैं या कई बार उपहास के तौर पर भी लेकिन यही सच्चाई है कि जनता अपने नागरिक जीवन को धार्मिक आस्था के आधार पर जीने लगी है।संवैधानिक आस्था फ़िलहाल पीछे है। पीछे है का मतलब उस निजी स्तर पर है, जहां कुछ समय पहले तक धार्मिक आस्था हुआ करती थी।

बाक़ी बातें इस कार्यक्रम में हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *