रवीश कुमार
इस कहानी में झोल है। हंसी भी आती है कि लोग ख़ुद को और जमाने को कितना बेवकूफ समझते हैं।
कहानी यह है कि डॉ प्रवीण कुमार की क्लिनिक के बाहर तीन लोग कुछ बातें करते हैं। इसे सुनकर प्रवीण कुमार अपने क्लिनिक/ घर से भाग जाते हैं। पाँच दिन बाद तीनों लोग फिर आते हैं और पूछताछ करते हैं। उन्हें देखकर डॉ प्रवीण कुमार फिर भाग जाते हैं। ग़ाज़ियाबाद से दिल्ली भागते हैं। भागते हुए पुलिस को नहीं बताते हैं। तब तक ये तीनों उनके पीछे पीछे उस दोस्त के घर पहुँच जाते हैं जिसके यहाँ डॉ प्रवीण कुमार भाग कर छिप जाते हैं।
वहाँ पर तीनों डॉ के दोस्त के साथ मारपीट करते हैं। वहाँ से डॉ प्रवीण को फिर से ग़ाज़ियाबाद ले आते हैं और अपनी कार में घुमाते हैं। उन्हें बताते हैं कि जीएसटी अफ़सर हैं। मेरठ जेल में बंद कर देंगे। तीस लाख दो। भोले डॉक्टर साहब कहते हैं कि तीस लाख तो नहीं। दस लाख लाकर दे देते हैं। बाद में पता चला कि वे नक़ली जीएसटी अफ़सर थे।
तो डॉ प्रवीण कुमार को नक़ली जीएसटी अफ़सर से क्यों डर लगा? क्यों भाग रहे थे? असली जीएसटी ही समझ कर भाग रहे होंगे? नक़ली समझ कर भागते तो पुलिस को सूचना देते।
जो हुआ सो हुआ। अब होना यह चाहिए कि असली जीएसटी अफ़सर को डॉक्टर के यहाँ छापा मारना चाहिए। पूरा रिकार्ड देखना चाहिए।
ये तो हुई नक़ली जीएसटी अफ़सर की कहानी। यूपी में असली जीएसटी अफ़सर भी लूटने के मामले में लिप्त पाए गए हैं। उदाहरण यूपी का दे रहा हूँ मगर यह कहानी तो हर राज्य की होगी।हर राज्य का अख़बार नहीं पढ़ सकते न। ख़ैर।
मथुरा में जीएसटी अफ़सर अजय कुमार ने चाँदी के कारोबार करने वालों से 43 लाख लूट लिए। कई दिनों तक फ़रार रहे लेकिन गिरफ्तार हो गए। हमने फरारी के वक्त जो ख़बर छपी थी उसकी क्लिपिंग लगा दी है।
एक ही रास्ता है। जीएसटी ठीक से दिया करें। हालाँकि यह क़ानून इस समय भी बर्बाद कर रहा है और आगे चलकर भी बर्बाद करेगा लेकिन यह एक अलग विषय है और जब कोई सुनने समझने के लिए तैयार ही नहीं तो इस विषय को छोड़ देते हैं।
जब तक यह क़ानून है नियम से जीएसटी दीजिए वर्ना डॉ प्रवीण कुमार की तरह जीएसटी का नाम सुनकर भागते रहना पड़ेगा। डॉ प्रवीण कुमार जी पुलिस पर भी आरोप लगा रहे हैं।