हाल ही में शुक्रवार को विजयदशमी के संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिमों को लेकर बड़ा बयान दिया है। जिसमे उन्होने देश में मुस्लिमों पर अपनी जनसंख्या बढ़ाने का आरोप लगाया है। साथ ही इसे देश की एकता और अखंडता के लिए ख़त’रा करार दिया। हालांकि स्थिति भागवत के दावों के विपरीत है। दरअसल, बीते 20 सालों में मुस्लिमों की नहीं बल्कि हिंदुओं की आबादी में इजाफा हुआ है।
भारत में 1991 से 2001 के बीच और फिर 2001 से 2011 के बीच मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी में तेजी के साथ इजाफा हुआ है। वहीं मुस्लिमों की आबादी बढ़ने की दर में गिरावट रही। दरअसल, देश के सभी प्रमुख धार्मिक समुदायों में, इन दो दशकों के बीच जनसंख्या वृद्धि में सबसे कम गिरावट हिंदुओं के मामले में रही , जबकि जैन और बौद्ध जैसे छोटे समूहों में सबसे तेज गिरावट देखी गई।
1991 की जनगणना में जम्मू और कश्मीर को शामिल नहीं किया गया था। ऐसे में विकास दर की गणना तत्कालीन राज्य को छोड़कर की जानी चाहिए, जो अब दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित है। जम्मू और कश्मीर को छोड़कर, 1991 से 2001 तक देश की कुल जनसंख्या में 21.5% की वृद्धि हुई, लेकिन 2001 और 2011 के बीच कम 17.7% की वृद्धि हुई। सभी धार्मिक समुदायों ने पिछले दशक की तुलना में धीमी वृद्धि को देखते हुए इसमें योगदान दिया।
हिंदू जनसंख्या वृद्धि में गिरावट 19.9% से 16.8 प्रतिशत तक 3.1 प्रतिशत अंक थी। वहीं मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि 29.3% से 4.7 प्रतिशत अंक गिरकर 24.6% हो गई, जबकि ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन जनसंख्या समूहों में और भी बड़ी गिरावट देखी गई। इसके अलावा केरल में मुसलमानों की आबादी बिहार या उत्तर प्रदेश में हिंदुओं की आबादी की तुलना में बहुत कम प्रतिशत बढ़ी है।
बता दें कि संघ प्रमुख ने कहा कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88% से घटकर 83.8% रह गया है। वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8% से बढ़कर 14.24% हो गया है।