अमरीक सिंह/ जालंधर
याद कीजिए कि तकरीबन एक साल पहले ‘वारिस पंजाब दे’ का स्वयंभू मुखिया तथा अलगाववादी-खालिस्तानी अमृतपाल सिंह खालसा दुबई से जब पंजाब आया था; उसकी पहली घोषणा थी कि वह प्रदेश से मुसलमानों और ईसाइयत का नामोनिशान मिटा देगा. चर्चों व ईसाई पूजा घरों को निशाना बनाया गया. कहीं-कहीं मस्जिदों पर भी हमले हुए या कुरान शरीफ का अपमान करने की कवायद की गई.
इसकी शुरुआत सरहदी शहरों अमृतसर, तरनतारन और गुरदासपुर से हुई थी. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और विभिन्न देशों के राजकीय अधिकारियों ने अपरोक्ष हस्तक्षेप किया तो पुलिस हरकत में आई और यह सिलसिला थम गया लेकिन तब तक अमृतपाल सिंह खालसा काफी जहर बो चुका था.
उसकी अलामतें अब और ज्यादा खुलकर सामने आ रही हैं. वह खुद राजद्रोह के आरोप में असम के डिब्रूगढ़ जेल की सलाखों के पीछे है.
खैर, पंजाब में बाढ़ का कहर जारी है और यह प्राकृतिक आपदा मरने वाले से उसका मजहब नहीं पूछती. जन्म और मृत्यु रोजमर्रा की क्रिया हैं. बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के शिकार हुए बगैर भी लोग बड़े पैमाने पर रोज अचानक या बीमारियों के चलते दम तोड़ते हैं. लेकिन यह कितना त्रासद है कि मरने वाले शख्स को आखिरी सफर के लिए दो गज जमीन भी मयस्सर न हो.
राज्य के सिखों और हिंदुओं के साथ मुसलमानों के बहुत अच्छे सामाजिक संबंध हैं. संगरूर से सटा जिला मलेरकोटला मुस्लिम बाहुल्य है और वहां कभी किसी किस्म का कोई फसाद नहीं हुआ.
यहां तक कि 1947 में स्थानीय सिखों और हिंदुओं ने इस शहर को चौतरफा हिफाजती बंदोबस्त के साथ घेर लिया था और आक्रमणकारियों का अपनी जान की परवाह न करते हुए मलेरकोटला के मुसलमानों को बचाया था.
रिकॉर्ड है कि एक भी मुसलमान मलेरकोटला और सरहिंद की सरजमीं से हिजरत करके पाकिस्तान नहीं गया. मलेरकोटला के नवाब ने गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों की शहादत के वक्त सरहिंद के मगरूर नवाब का भरी महफिल में खुला विरोध किया था और उसे धत्ता बताकर महफिल छोड़कर आ गए थे.
मलेरकोटला में मुसलमान यकीनन पहले दर्जे के नागरिक हैं और उनको अतिरिक्त सम्मान भी दिया जाता है. अभी पिछले दिनों नवाब वंशज की आखिरी बेगम को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने खासतौर सम्मानित भी किया था. लेकिन, पंजाब के फिरोजपुर, गुरदासपुर, फाजिल्का, होशियारपुर और पठानकोट में आलम अलहदा है.
यहां आपस में कभी दंगा-फसाद तो नहीं हुआ लेकिन शवों को श्मशान घाट या कब्रिस्तान में दफनाने को लेकर गहरा विवाद उठ खड़ा होता है जो कभी-कभी हिंसक टकराव में भी बदल जाता है. पुलिस- प्रशासन अंत में हस्तक्षेपकारी बनता है.
कई बार तो फिर भी मसले का माकूल हल नहीं निकलता. ऐसे-ऐसे मंजर भी दरपेश हुए हैं कि लोगों को अपने परिजनों के शव मुर्दा घाट अथवा कब्रिस्तान की बजाय अपने घरों में ही दफनाने पड़े.
तमाम सरहदी जिलों और सूबे में पंजाब वक्फ बोर्ड के पास हजारों एकड़ जमीन है लेकिन बावजूद इसके फौत होने वालों को रिवायती कब्रिस्तान की जगह नसीब नहीं होती. इसके पीछे राजनीति छोटी वजह है और अंधविश्वास बड़ी वजह. सूरत-ए-हाल यह है कि मुर्दों को दफनाने के लिए परिजन चोरी-छिपे श्मशान घाट या कब्रिस्तान जाते हैं.
ऊपर दिए गए जिलों के नामों के गांवों में यह सब हदें पार करने वाला है. होशियारपुर के मूल बाशिंदे अख्तर अंसारी कहते हैं कि पुलिस और प्रशासन को कई बार शिकायतें दी गईं लेकिन नतीजा अंततः शून्य निकला. अलबत्ता यह सलाह जरूर मिलती रही की पंचायत के साथ मिल-बैठकर इस पर बात कीजिए. जब फसाद की जड़ ही पंचायत हो तो वहां से क्या फैसला आना है, यह कोई भी बखूबी समझ सकता है.
होशियारपुर के ही एक सरपंच कहते हैं कि हम अपने श्मशान घाट में सिख और हिंदू रीति के मुताबिक दाह संस्कार करते हैं. जबकि मुसलमानों में दूसरी परंपराओं के साथ यह सब किया जाता है. श्मशान घाट को कब्रिस्तान कैसे बनने दें. थोड़ा पढ़ा-लिखा लगने वाला सरपंच कहता है कि कब्रिस्तान इसलिए नहीं बनने दिया जा रहा कि मुस्लिम धर्म के लोग वहां जादू- टोना करते हैं! इस हास्यास्पद तर्क पर क्या कहा जाए?
इसी सोच का संक्रमण कई जिलों के गांवों तक फैला हुआ है और इसने मुसलमानों को कब्रिस्तानों से मरहूम रखा हुआ है.
राज्य सरकार ने वक्त-वक्त पर जिला स्तर पर उपायुक्तों को निर्देश जारी किए हैं कि जिन गांवों में कब्रिस्तान नहीं है वहां पंचायती जमीन से कब्रिस्तान बनाना सुनिश्चित किया जाए लेकिन इन आदेशों को सिरे से अनदेखा किया जा रहा है.
बीते दिन जिला होशियारपुर के गांव सुंडियां में दफन को लेकर हिंसक टकराव हो गया. वहां मुस्ताक अहमद की ओर से भी एक शिकायत दर्ज करवाई गई है कि वक्त बोर्ड के पास बेहिसाब जमीन होने के बावजूद पंजाब के मुसलमानों को कब्रिस्तान नसीब नहीं. मुस्ताक अहमद के मुताबिक, “माकूल हल नहीं निकला तो हाई कोर्ट का रुख करेंगे और जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट का भी. कहीं तो इंसाफ मिलेगा.”
पंजाब के एडीजीपी एमएफ फारूकी पंजाब वक्फ बोर्ड के मुख्य प्रशासक भी हैं. कुछ महीने पहले इस बीच वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को यह जिम्मेदारी दी गई थी. उनके आगे ऐसी बेशुमार शिकायतों के अंबार लगे लेकिन अभी वे शिकायतें इंसाफ से कोसों दूर हैं.
एडीजीपी और पंजाब का बोर्ड के एडमिनिस्ट्रेटर एमएम फारुकी कहते हैं कि होशियारपुर का मामला उनके ध्यान में है, इस बाबत एसएसपी होशियारपुर और डीएसपी मुकेरियां हिदायतें जारी की जा चुकी हैं की राज्य वक्फ बोर्ड की जगह पर कब्रिस्तान है, लेकिन स्थानीय लोगों की तरफ से वहां मुस्लिम समुदाय के लोगों को दफनाने से रोका जा रहा है. इसलिए व्यवधान डालने वालों पर तुरंत सख्त कार्रवाई की जाए.
फारूकी ने कहा कि सरहदी इलाकों में इस तरह की समस्याएं लगातार उनके ध्यान में आ रही हैं. इस बाबत यथाशीघ्र पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक कर मामलों का हल निकाला जाएगा.
गौरतलब है कि पंजाब में बहुत बड़ी तादाद में मुस्लिम आबादी है. रोजी-रोटी के सिलसिले में भी दो दशक पहले मुसलमान कामगार पंजाब आने लगे थे. रफ्ता-रफ्ता मुनासिब उजरत के चलते वे सपरिवार यहां आने लगे और स्थयी रूप से यहां बसने लगे.
पंजाब को मुस्लिम भाईचारा खुद के लिए सबसे महफूज मानता है लेकिन दिक्कत सिर्फ कब्रिस्तानों को लेकर है. पंजाब वक्फ बोर्ड के पास हजारों एकड़ जमीन है लेकिन पता नहीं क्यों बाकायदा नीति बनाकर कब्रिस्तान नहीं बनाए जा रहे और मुसलमानों को मुर्दे ढो कर जगह- जगह तथा वह भी चोरी-छिपे भटकना पड़ रहा है.
पंजाब के माथे से यह दाग कब मिटेगा, फिलवक्त कहा नहीं जा सकता. अफसोस प्रकट किया जा सकता है कि गुरुओं-पीरों तथा रूहानी संतों की धरती पर ऐसा हो रहा है.
साभार: आवाज द वॉइस