शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम की फिल्म ‘पठान’ पर इन दिनों चर्चा गर्मा है। फिल्म का पहला गाना ‘बेशर्म रंग’ रिलीज होते ही सोशल मीडिया से लेकर सियासत तक ‘पठान’ को लेकर विरोध और समर्थन के दो खेमों में बंटे नज़र आये।
राइट विंग से जुडे संगठन और लोग शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण को लेकर तल्ख़ बयान दे रहे हैं और शिकायत दर्ज करा रहे हैं।
पठान के गाने ‘बेशर्म रंग’ पर भाजपा के मंत्रियों ने दावा किया कि गाने में भगवा रंग का अपमान किया है, जो हिंदू समुदाय के लिए पवित्र माना जाता है।
इस मुद्दा पर एक बार फिर बॉलीवुड दो गुटों में बंट गया है, कुछ लोग हिंदू संगठनों का समर्थन कर गाने को अश्लील बता रहे हैं, वहीं कुछ बॉलीवुड से जुड़े लोग ऐसे हैं जो फिल्म के पक्ष में बोल रहे हैं। अब ‘पठान’ के पक्ष में रहने वालों की लिस्ट में रत्ना पाठक शाह का नाम भी शामिल हो गया है।
हाल ही में दिए इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में अभिनेत्री रत्ना पाठक ने ‘पठान’ का विरोध करने वालों को जमकर फटकार लगाई है।
अपनी पहली गुजराती फिल्म ‘कच्छ एक्सप्रेस’ के प्रमोशन के दौरान बातचीत में अभिनेत्री रत्ना पाठक ने कहा कि ‘लोगों के पास अपनी थाली में खाना नहीं है, लेकिन कोई और जो कपड़े पहन रहा है उसके बारे में वह लोग गुस्सा कर सकते हैं।’
इसके साथ ही जब रत्ना पाठक से पूछा गया कि जब किसी कलाकार को पता चलता है कि उसकी ड्रेस पूरे देश का मुद्दा बन गई है, तब उसे कैसा महसूस होता है?
रत्ना ने कहा, ‘अगर ये चीजें आपके दिमाग में सबसे ऊपर हैं तो मैं कहूंगी कि हम बहुत मूर्खतापूर्ण समय में जी रहे हैं। यह ऐसा मुद्दा नहीं है जिसके बारे में मैं बहुत ज्यादा बात करना चाहूंगी या इसे ज्यादा महत्व दूंगी।’
वहीं अपने इंटरव्यू के दौरान रत्ना पाठक ने उम्मीद भी जताई। उन्होंने कहा कि- मैं उम्मीद कर रही हूं कि भारत में इस समय जितने समझदार लोग दिखाई दे रहे हैं, उससे कहीं अधिक हैं। वे आने वाले समय में निकल आएंगे, क्योंकि जो हो रहा है, यह भय की भावना, बहिष्कार की भावना ज्यादा समय तक रहने वाली नहीं है। मुझे लगता है कि इंसान एक हद से ज्यादा नफरत को बर्दाश्त नहीं कर सकता।
एक विद्रोह होता है, लेकिन कुछ समय बाद आप इस घृणा से थक जाते हैं। मैं उस दिन के आने का इंतजार कर रही हूं।’ हालांकि, स्वरा भास्कर समेत कई बॉलीवुड हस्तियां ‘पठान’ के समर्थन में उतरीं हैं, जिनमें रत्ना पाठक शाह भी शामिल हो गई हैं।
साभार: बोलता हिदुस्तान
मानव प्रगति का इतिहास गवाह है कि (मसलन दुनिया में हर जगह वाले सम्राटों, सुलतानों, बादशाहों (किंग्स) राजाओं सहित आधुनिक नेताओं सहित, आदि ने) जिस जिस ने अपनी महत्वाकांक्षा के लिए थोड़े कुछ बेहतर काम करे लेकिन ज्यादातर लोगों को बावजूद गिने चुने उस क़दम के, परेशानी भूख,दर्द दुःख पीड़ा, हिंसा नफ़रत ,डर और मौतें भोगने को मिली। लेकिन जनता भुगतती रही। लेकिन क्रुर राज सत्ता और वंश धारा शाही होते गये। लोकतंत्र में भी हिंसाअंतत्वोगत्वा स्विकार्य नहीं।
महावीर,गौतम ईसा, गांधी ने जो उदाहरण प्रस्तुत कर समझाया पर यदि उस आधार पर संविधान बन जाने के बावजूद हिंसात्मक रवैया पनपता महसूस हो तो? हमें सजगता के लिए मंथन आवश्यक लगना चाहिए।
वैसे बचता कौन है।अंत तो सुनिश्चित ही है।
कर लो ज्यादती या नफरत। प्यार मुहब्बत नष्ट नहीं होता। व्यक्ति अवश्य।
संविधान पर चलना लोकतंत्र जिंदाबाद करना है।