उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले की गुरेज घाटी के मुस्तफा-इब्न-जमील (25) पढ़ाई में अच्छा नहीं थे. इसलिए उन्होंने 10वीं में स्कूल छोड़ दिया. हालाँकि, आत्म-अन्वेषण की खोज में कुछ उन्हें अंदर से हिलाता रहा. उन्होंने कुछ समय ‘एकान्त’में बिताने का फैसला किया. एकांत के अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सुलेख में हाथ आजमाने का फैसला किया.
विचार के पीछे का उद्देश्य उनकी लिखावट में सुधार करना था, क्योंकि यह बहुत खराब थी. मुस्तफा ने कुछ समय के लिए सुलेख का अभ्यास किया और जल्द ही महसूस किया कि उन्होंने मूल बातें सीख ली हैं. इसलिए उन्होंने पवित्र पुस्तक कुरान का एक अध्याय लिखने का फैसला किया. ऐसा करने में, मुस्तफा को ‘पूर्ण संतुष्टि’मिली.
यही वह क्षण था, जब उसे लगा कि वह पूरी ‘पुस्तक’लिख सकते हैं. ‘पवित्र पुस्तक’लिखना एक बड़ी परियोजना थी. इसलिए उन्होंने सोचा कि वह पुस्तक के कुछ अध्याय लिखकर शुरुआत करेंगे और साथ ही साथ अपनी लिखावट पर काम करेंगे. कुरान के कुछ अध्याय लिखने के बाद, उन्होंने काम जारी रखने का फैसला किया.
मुस्तफा इस परियोजना के लिए इतने समर्पित रहे कि 2019 में 11 महीने की अवधि में उन्होंने पूरा कुरान लिख दिया. उनके हाथ से लिखा हुआ कुरान 450 पन्नों का है, जिसका वजन करीब 21 किलो है.
इस प्रक्रिया में, उन्हें किसी पेशेवर द्वारा निर्देशन या सहायता नहीं की गई थी. हालाँकि, वह नियमित रूप से एक मुफ्ती (एक इस्लामी न्यायविद जो कानूनी रूप से विभिन्न धार्मिक और व्यक्तिगत मामलों पर शासन करने में सक्षम हैं) से अपने काम की फिर से जांच और सत्यापन करवाते रहे. उनके काम को मुफ्ती ने मंजूरी दे दी है.
चूंकि मुस्तफा स्कूल छोड़ चुके थे. इसलिए उन्हें वह टैग हर समय अपने साथ रखना पड़ता था. गणित में कमजोर होने के कारण वह मैट्रिक की परीक्षा पास नहीं कर पाए थे. कई बार किस्मत आजमाने के बाद भी वह इसमें सफल नहीं हो पाए. वह अंततः अपने परिवार, रिश्तेदारों और बड़े पैमाने पर समाज के लिए ‘ताना का विषय’बन गए थे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे विफलता के ब्रांड के रूप में लेबल किया गया था, और वे मानसिक उत्पीड़न के अधीन रहे.’’
जब उन्होंने सुलेख का काम शुरू किया तो उनके कुछ साथियों ने उनका मनोबल गिरा दिया. इसलिए उन्होंने दिन के बजाय रात में काम करना चुना. उन्होंने कहा, ‘‘उनके संपर्क से बचने के लिए मैंने ईशा की नमाज (एक दिन की पांचवीं इस्लामी नमाज) खत्म करने के बाद फज्र की पुकार (दिन की पहली इस्लामी नमाज) तक ज्यादातर सुलेखन का काम किया.’’
हालांकि इससे उनकी नींद का पैटर्न बदल गया और वह दिन में कुछ घंटों के लिए आराम करते थे. मुस्तफा ने शुरू में वाटरप्रूफ-स्याही की तलाश की, जो उन्हें बाजार में कहीं भी नहीं मिली, यहां तक कि श्रीनगर में भी नहीं. उन्होंने बताया, ‘‘और इसलिए उन्होंने अपने काम को लेमिनेटिड करवाया, क्योंकि साधारण स्याही पानी का मुकाबला नहीं कर पाती है.’’