मोरबी: एक माँ की दर्दनाक कहानी- मुर्दाघर में मिले ज़िंदा बेटे, घायल पड़े थे, जला दिए जाते तो क्या होता?

गुजरात के मोरबी में हुए हादसे ने भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इस हादसे में सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवा दी। हैरानी की बात है कि मृतकों के साथ-साथ घायलों की लाश को भी मुर्दाघर पहुंचा दिया गया है। इस मामले ने गुजरात के शासन-प्रशासन की पोल खोल के रख दी है।

‘द प्रिंट हिंदी’ की रिपोर्ट के अनुसार- “मोरबी सिविल अस्पताल में गुलशन राठौड़ नाम की महिला ने अपने ज़िंदा बेटों को मुर्दाघर से बाहर निकाला है। घंटों ढूंढ़ने के बावजूद उन्हें बेटें नहीं मिल रहे थे। माँ अपने बेटों को ढूंढ़ते-ढूंढते अस्पताल के मुर्दाघर पहुँच गई।

18 और 20 वर्षीय बेटों को शवों के बीच पड़ा देखकर एक बार को तो उनकी उम्मीद टूट गई होगी। लेकिन बेटों की चलती सांसें देखकर एक बार फिर से राठौड़ ने अपनी हिम्मत बाँधी।
ये पूरा मामला ‘गुजरात मॉडल’ की नाकामी का उदाहरण है। सिविल अस्पताल की इस चूक के कारण दो लोगों की मौत हो सकती थी। सोचिए घायल ज़िंदा लोगों को इलाज देने के बजाए उन्हें मुर्दों के बीच लेटा दिया गया।

इस व्यवस्था से तंग आकर गुलशन राठौड़ ने अपने दोनों बेटों को सिविल अस्पताल से निकलवाकर प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवा दिया।
गुलशन राठौड़ के बेटे उसकी परिवार की एक मात्र उम्मीद हैं। दोनों मिलकर 15 हज़ार रूपए कमाते हैं, और इसी से घर का खर्च चलाते हैं। पहले तो, बेटों के घायल होने के कारण ही बहुत नुकसान हो चूका है।

गुलशन को चिंता है कि घर का गुज़ारा कैसे चलेगा। दूसरा, अगर बिना इलाज ही उसके दोनों बेटों को मुर्दाघर में छोड़ दिया जाता तो न जाने क्या होता।
बता दें, 30 अक्टूबर को गुजरात के मोरबी में केबल पुल टूटने से 300 से अधिक लोग डूब गए थे। इस हादसे में 140 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई।

साभार: बोलता हिदुस्तान

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