क्या आप जानते है कि मोदी सरकार ने 18 जुलाई से गरीब आदमी के उपयोग में आने वाले नॉन ब्रांडेड प्री- पैकेज्ड व प्री लेबल खाद्यान पदार्थो पर जीएसटी लगाया है उस से सरकार को सालाना कितना राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है ? यह रकम है मात्र 15 हजार करोड़ रुपये सालाना! और वही कोरोना काल के ठीक पहले 2019 में अडानी अम्बानी जैसे बड़ी कंपनियों के मालिकों को कारपोरेट टैक्स में जो बड़ी छूट दी गई थीं उससे सरकार को हर साल कितने राजस्व की हानी हुई हैं ? यह रकम है लगभग एक लाख़ 50 हजार करोड़ सालाना !
अगर सरकार का खजाना खाली है तो आपके हिसाब से क्या करना बेहतर होता ? 150 करोड़ सालाना मात्र के लिए गरीब आदमी पर कर बढ़ाना या एक लाख़ 50 हजार करोड़ सालाना दी जा कारपोरेट टैक्स की छूट वापस लेना ? यह इकनॉमिक्स नही !….यह है मोदीनॉमिक्स !
मोदी सरकार चाहती तो केवल पुराने कॉर्पोरेट टैक्स को वापस लाकर ही 1.50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कर सकती थी। यह पांच फीसदी जीएसटी की तुलना में लगभग 10 गुना ज्यादा कर संग्रह होता और इससे बेहद छोटा वर्ग प्रभावित होता। और देश का बडा तबका महंगाई की मार झेलने से बच जाता
आज देश की शीर्ष कंपनियों पर लगने वाला कॉर्पोरेट टैक्स लगभग 25.17 फीसदी है। इसमें विभिन्न सेस सरचार्ज भी शामिल हैं। कोरोना काल के पहले यही कॉर्पोरेट टैक्स 34.94 फीसदी हुआ करता था। यानी कॉर्पोरेट टैक्स में लगभग 9.77 फीसदी की कमी की गई है। जबकि नई कंपनियों पर लगने वाला कॉर्पोरेट टैक्स इससे भी कम केवल 17.01 फीसदी है। पहले यही टैक्स लगभग 29.12 फीसदी हुआ करता था।
इस मोदीनॉमिक्स को समझिए कि देश के गरीब आदमी से जमकर टैक्स वसूलो और अडानी अम्बानी जैसे उद्योगपतियो को टैक्स में छूट दो ताकि वह दुनिया के टॉप टेन अमीरों की सूची में अपना स्थान बना सके…….