आवाज- द वॉयस/ मेरठ
उत्तर प्रदेश के भीड़-भाड़ और शोरगुल से भरे शहर मेरठ में एक नौजवान खामोशी से अपना काम कर रहा होता है. गुरबत ने दुश्वारियां तो बहुत पैदा की पर उसका रास्ता नहीं रोक सकी.
अजहरूद्दीन की उम्र महज बीस साल की है. उनके पिता ने तमाम जिंदगी मजदूरी की और अजहरूद्दीन का पालन-पोषण किया. उनकी मां ने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा, लेकिन मां-बाप दोनों ने अजहरूद्दीन को उत्साहित किया कि वह इंजीनियर बने. मेरठ के मुरादनगर के रहने वाले अजहरुद्दीन आखिरकार मैकनिकल इंजीनियर बन ही गए.
और अब, अजहरुद्दीन के हाथ कबाड़ के बीच अपने मतलब की चीजों को खोज निकालते हैं और उन्हें गाड़ियों में तब्दील कर देते हैं.
अजहरूद्दीन ने कबाड़ में से एक इलेक्ट्रिक कार बना दी है और अब इस काम के लिए उन्हें महज सराहना ही नहीं मिल रही, दाम भी मिलने लगे हैं. उनकी इलेक्ट्रिक कार को विदेशों से ऑनलाइन ऑर्डर्स हासिल हुए हैं.
हिम्मते मरदां, मददे खुदाः गुरबत को हराकर कामयाबी हासिल की है अजहरुद्दीन ने
यही नहीं, इस नौजवान ने बिजली से चलने वाली साइकिल भी बनाई है जो एक दफा चार्ज करने के बाद 100 किलोमीटर तक चल सकती है. गौरतलब है कि बाजार में उपलब्ध ब्रांडेड इलेक्ट्रिक साइकिलें एक बार चार्ज करने के बाद 30 से 40 किमी ही चल पाती हैं.
अजहरूद्दीन की गरीबी से लड़ने और प्रतिभा और कड़ी मेहनत के दम पर आगे बढ़ने की काबिलियत ने दूसरों के सामने भी उम्दा मिसाल पेश की है.
अजहरूद्दीन ने अपनी शुरुआती पढ़ाई सरकारी स्कूल से की है और इसवक्त वह सुभारती यूनिवर्सिटी, मेरठ में बी.टेक दूसरे साल के छात्र हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन उनसे फीस नहीं लेता और उनकी प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सुविधाएं मुहैया करा रहा है.
अपनी इलेक्ट्रिक कार और इलेक्ट्रिक साइकिल के साथ ही अजहरूद्दीन ने एक सोलर ठेला भी बनाया है, जिसे चार्ज करने की जरूरत ही नहीं है. उनकी कामयाबी इसलिए भी काबिले-गौर है क्योंकि उन्हें सारी उपलब्धियां खुद अपने दम पर हासिल की हैं.
अब उनका ध्यान अपने ई-कार्ट (इलेक्ट्रिक ठेले) को सरकार की मान्यता दिलवाने पर है.
हालांकि, यह ई-कार्ट सौर ऊर्जा से चलती है लेकिन इसे चार्ज भी किया जा सकता है. अजहरुद्दीन ने खुद कुछ वेबसाइट्स को बताया है कि ऐसी गाड़ियों से पर्यावरण को काफी फायदा हो सकता है. यह सस्ता भी बेहद है. इसको बतौर ऑटो भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
इस वक्त बड़ी रिहायशी सोसायटीज से उन्हें इस कार्ट के ऑर्डर मिल रहे हैं, जहां प्रदूषणमुक्त कार्ट बड़ी अहमियत रखते हैं. इसके साथ ही चिड़ियाघरों, ताज महल वगैरह में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. अभी तक ऐसी गाड़ियां बैटरीचालित होती हैं, लेकिन अब उसका सस्ता विकल्प सोलर कार्ट के रूप में मौजूद है. हैदराबाद की एक सोसायटी ने अजहरूद्दीन को ऐसी 6 गाड़ियों के ऑर्डर दिए हैं.
अपनी पहली इलेक्ट्रिक कार्ट (गाड़ी) बनाने में उन्हें 1.5 लाख रुपए की लागत आई थी. उनकी एक कार्ट दुबई भी भेजी गई है. अजहरुद्दीन को अब उनकी ई-साइकिल के लिए भी ऑर्डर्स मिलने लगे हैं.
अजहरूद्दीन की कहानी बताती है कि जुनून और कड़ी मेहनत का फल मिलकर ही रहता है चाहे आप समाज के कितने भी गरीब तबके से क्यों न हों.
Twenty-year-old Azharuddin from Meerut in the north Indian state of Uttar Pradesh is a good innovator. He created an electric cart from junk and he is now receiving online orders from abroad. He has also made an electric bicycle that can cover 100 km on a single charge.🇮🇳🥇🇮🇳👏 pic.twitter.com/uephyMMl4K
— Mohammad Mohsin I.A.S (@mmiask) March 31, 2021
साभार: आवाज द वॉइस
Well done Azharuddin. Your innovation will help preserve the nature as well as bring prosperity to your family and nation.