कश्मीर की यास्मीना गुल बनाती हैं अपने आस पास के प्लास्टिक कचरे से ईंट

यास्मीना गुल उस समय मात्र 13 वर्ष की थीं जब उसने प्लास्टिक की ईंट बनाने का फैसला लिया दर असल यास्मीना पहले उत्तरी कश्मीर में अपनी जन्मभूमि गुरेज में रहती थीं जबकि अब वो श्री नगर में शिफ्ट हो गयी हैं।

यास्मीना गुरेज़ के सुंदर और प्राकृतिक वैभव में रहने के बाद जब श्री नगर आयीं तब उन्होंने देखा क यहाँ तो चारो तरफ कचरा ही कचरा है और यास्मीना को बुरा लगने के बजाये उसी कचरे से निपटने का उपाए सुझा और उसने उसी प्लास्टिक के कचरे से ईंट बनाना शुरू कर दिया।

वो कहती हैं के यहाँ कचरे में ज्यादातर डिस्पोजेबल प्लास्टिक की बोतलें और रैपर होते हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक नॉन-बायोडिग्रेडेबल है और हमारे पर्यावरण की रक्षा के लिए इससे निपटने की जरूरत है। इसलिए मुझे इको ब्रिक बनाने का विचार आया। जबकि यूरोप में प्लास्टिक की ईंटें काफी लोकप्रिय हो चुकी हैं।

यास्मीना कहती हैं मैंने शुरू में ईको-ईंटों से टेबल बनाई और उनकी उपयोगिता का परीक्षण करने के लिए उन्हें विशेषज्ञों के पास भेजा। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर मैंने सिंगल यूज प्लास्टिक से कुछ और सामान बनाया और उन्हें उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को भेंट किया

यास्मीना ने कहा कि स्थानीय स्तर पर इस्तेमाल की जाने वाली टेराकोटा ईंटों की तुलना में पर्यावरण की ईंटें अधिक टिकाऊ होती हैं। इनका जीवन 2000 वर्ष से अधिक है। हम शुरू में इन पारिस्थितिक ईंटों के साथ गांवों में झोपड़ियां और अन्य छोटी कलियां बना सकते हैं।

यास्मीना की बनायीं हुई ईंटे अन्य देशों की ईंटों से कठोर हैं।  यास्मीना कहती हैं की कश्मीर की जलवायु के हिसाब से पर्यावरण की ईंटे बहुत उपयुक्त हैं क्योंकि यहाँ सर्दी में तापमान जीरो से भी नीचे चला जाता है।

यास्मीना कहती हैं क ऐसे मौसम में यह ईंटे बिलकुल सही हैं यह गर्मियों में ठंडी रहती हैं तथा सर्दियों में गर्मी प्रदान करती हैं।

यास्मीना कहती हैं अब मै कश्मीर में पर्यावरण की ईंटो को लोकप्रिय बनाने के लिए उसके उपयोग के बारे में लोगो को जागरूक करने का काम कर रही हूँ और इस काम के लिए मुझे सरकार से थोड़ी मदद चाहिए।

वो कहती हैं की मैं इन पर्यावरणीय ईंटों से फर्नीचर और अन्य सामान बनाने की योजना बना रहा हूं ताकि उन्हें जनता के सामने पेश किया जा सके और लोगो को जागरूक किया जा सके।

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