अब भला डकैत खुद क्यों मानने लगा कि वह डकैत है! यह तो अदालत और सभ्य समाज को साबित करना होता है। आइए मैं बताता हूं क्या-क्या जोड़ना है –
आठ साल से चल रहे 18-18 घंटे वाले रैकेट की मार से भारत की आर्थिक रीढ़ टूट गई है, उसे जोड़ना है। फिर से आठ-दस परसेंट की ग्रोथ रेट वापस लानी है। भारत में हर महीने करोड़ों की संख्या में रोजगार जा रहे हैं और युवाओं की आशाएं टूट गई हैं। भविष्य का सपना टूट रहा है। समृद्धि की आशाएं टूट रही हैं। पिछले बीस साल में वैश्विक ताकत बनकर उभरे देश की सांस उखड़ने लगी है। उसकी टूटी आशाएं जोड़कर कल के लिए उम्मीदें देनी हैं।
पूरे देश की संपदा एक व्यक्ति को सौंप दी गई है। देश की आम जनता के 27 रूपये के मुकाबले वह 42-42 हजार करोड़ एक दिन में कमाता है। बराबरी और समानता का सपना टूट गया है। उसे वापस लाना है। यह देश डेढ़ लोगों द्वारा दो लोगों के लिए चलाया जा रहा है, संसद की चौखट पर सिर रखकर लोकतंत्र का मजबूत किले की दीवारें तोड़ दी गई हैं। उसे फिर से खड़ा करना है।
इस देश के लिए लाखों लोगों ने बलिदान दिए। उन बलिदानियों ने जिन सपनों के लिए अपना खून दिया था, उन सपनों को रौंद दिया गया है। उनकी शहादत की शान वापस लानी है, उनके सपनों का भारत बनाना है। महंगाई ने गरीबों के रोटी की उम्मीद तोड़ दी है, इतिहास में पहली बार एक आततायी सरकार है जो रोटी से लेकर कफन तक पर जीएसटी ठोक रही है। लोगों को पेट भरने की उम्मीद देनी है।
लोगों के अधिकार का गौरव छिन गया है और उन्हें राजा की ओर से भीख दी जा रही है। राइट टू फूड जैसा कानून होते हुए देश का प्रधानमंत्री कहता है कि देश के बुजुर्गों ने मेरा नमक खाया है। इस अपमान के जाल को तोड़कर, जनता के उच्छिन्न अधिकारों को वापस लाना है।
इस देश में झूठ और नफरत की राष्ट्रीय फैक्ट्री लगाई गई है जो दिन भर करोड़ों लोगों का आपस में विश्वास तोड़ रही है, सामाजिक तानाबाना तोड़ रही है, हमारी समरसता तोड़ रही है, जो मानवता तोड़ रही है। उसे कहीं बहुत नीचे दफना कर लोगों के दिलों को आपस में जोड़ना है।
शांति, समृद्धि और निडरता को तोड़ दिया गया है। लोगों को धर्मभीरू बनाया जा रहा है। इसे खत्म करना है। राजनीति और संसद देश को उल्लू बनाने की पाठशाला बन गई है, लोकतंत्र की गरिमा बिखर गई है, उसे वापस उसका सम्मान दिलाना है।
किसानों, मजदूरों, गरीबों, दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों से किया गया भारतीय राष्ट्रीय – राज्य का वादा तोड़ दिया गया है। उस वादे को जोड़कर उसे गांधी की जबान की तरह सत्य का पर्याय बनाना है। 1200 साल पीछे लौटकर भूतकाल में हिसाब बराबर करने का सपना देख रहे मूर्खों से देश को मुक्त कराना है।
भारत की 70 साल में बनी संस्थाओं और व्यवस्थाओं को तोड़कर उन्हें पिंजरे का तोता बना दिया गया है, उसे फिर से स्वायत्त बनाना है। देश सिर्फ एक भूखंड नहीं होता, देश उस भूखंड में रहने वालों से बनता है। वे ही इस देश के मालिक होते हैं। यह सिद्धांत टूट गया है। इसे वापस हासिल करना है।
यह होगा, आज नहीं तो कल होगा। राहुल गांधी, हम और आप नहीं करेंगे तो अगली पीढ़ी करेगी, कोई और करेगा। राष्ट्रीय फर्जीवाड़े की मियादें बहुत छोटी होती हैं। उसका अंत निश्चित है क्योंकि “सत्यमेव जयते” – सत्य ही जीतता है और सत्य यह है कि हर आने वाला कल बीते हुए कल की ओर नहीं लौटता, आगे बढ़कर बेहतर बनता है।
(यह लेख कृष्णा कांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)