ईशाना इस्माइलः इको-फ्रेंडली सेनेटरी नैपकिन बनाकर महिलाओं की बनी मददगार

मुहम्मद मुदस्सर अशरफी/ नई दिल्ली
बाजार में पाए जाने वाले अधिकांश सेनेटरी नैपकिन केमिकल युक्त होते हैं. यह प्लास्टिक से बनाए जाते हैं, जो लंबे समय तक उपयोग के बाद स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं. उपयोग के बाद इसे कूड़ेदान में फेंकना भी पड़ता है. इस्तेमाल के बाद उनकी रीसाइक्लिंगकी भी कोई व्यवस्था नहीं है.

एक आंकड़े के अनुसार, हर साल लगभग 12.3 बिलियन डिस्पोजेबल सेनेटरी नैपकिन का उपयोग होता है. मेंस्ट्रुअल हाइजीन एलायंस ऑफ इंडिया के अनुसार, देश में लगभग 336मिलियन मासिक धर्म वाली महिलाएं हैं,जिनमें से 36प्रतिशत डिस्पोजेबल सेनेटरी पैड उपयोग करती हैं.

एक तरफ जहां सेनेटरी नैपकिन के हानिकारक प्रभावों के बारे में महिलाओं में जागरूकता पैदा करने के प्रयास हो रहे हैं, वहीं कोयंबटूर की 18 वर्षीय इशाना इस्माइल जंक पैड के साथ आगे बढ़ रही हैं. वह बताती हैं, इस इको-फ्रेंडली विकल्प को बनाने की इच्छा तब पैदा हुई, जब उन्होंने 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद फैशन डिजाइनिंग का कोर्स शुरू किया.

ईशाना ने पर्यावरण के अनुकूल सेनेटरी नैपकिन बनाने को अपनी सोची-समझी पहल के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया और इसे हासिल किया. इनमें से 6का पैक एक साल तक चल सकता है. शुरुआत में इशाना ने केवल अपने इस्तेमाल के लिए सैनिटरी नैपकिन बनाए.

जब एहसास हुआ कि उनके दोस्तों को सैनिटरी उत्पादों के उपयोग में इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, तो उन्होंने और अधिक नैपकिन बनाना शुरू किया. अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए भी बनाए.

उन्होंने अपना खुद का बुटीक बनाया, जहां उन्हें अपने निजी इस्तेमाल के लिए कपड़े सेनेटरी नैपकिन बनाने का विचार आया. इशाना ने पैड बनाना शुरू किया, जिसे अनाया क्लॉथ पैड कहा जाता है. उसे बाजार में उपलब्ध सैनिटरी पैड का उपयोग करके स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता थ. उन्होंने

शुरू में दोस्तों को पैड के बारे में बताया, इस तरह की समस्याओं से दो चार थीं. उनकी ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद उन्होंने अधिक लोगों को पैड की आपूर्ति शुरू की.अपने स्वदेशी ब्रांड क्लॉथ पैड्स के तहत निर्माण कर रही ईशाना ने कहा, मैं यह भारत के लोगों के लिए कर रही हूं.

प्लास्टिक सेनेटरी नैपकिन के कारण हर लड़की को समस्या का सामना करना पड़ रहा है. वे चकत्ते जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का षिकर बन रही हैं.साथ ही इसे कम से कम 12बार इस्तेमाल करना पड़ता है. ईशाना के अनुसार, पैड को धोने के बाद हल्दी पाउडर में भिगोकर धूप में सुखा लें.

वह बताती हैं, मैं इस्तेमाक करने वालों को अगले महीने उपयोग करने से पहले पैड पर एक सूती कपड़े डालने और उन्हें इस्तेमाल करने से पहले कम से कम दो दिनों के लिए इस्त्री करने की सलाह देती हूं. महिलाओं के स्वास्थ्य पर ध्यान देने के अलावा, ईशाना की योजना महिलाओं को सशक्त बनाने की है.

इशाना की छोटी सी वर्कशॉप में पैड बनाए जाते हैं, जिसमें करीब 25महिलाएं काम करती हैं. ईशाना कटे हुए टुकड़ों को उन महिलाओं को भेजती हैं जिनके पास घर पर सिलाई की मशीनें हैं. वो अपने घर पर पैड सिलती हैं.

उन्होंने कहा कि कई महिलाएं मासिक धर्म से संबंधित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं. इसका मुख्य कारण डिस्पोजेबल सेनेटरी नैपकिन में इस्तेमाल होने वाले सिंथेटिक कपड़े हैं. ये नैपकिन डिस्पोजेबल हैं, लेकिन बायोडिग्रेडेबल नहीं हैं.

वह बताती हैं, हमारे द्वारा बनाए गए पैड अगर धूप में ठीक से कीटाणुरहित हो जाते हैं, तो उन्हें धोने और दोबारा इस्तेमाल करने से हमारे स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं होगा.इस पैड को संभालना बहुत आसान है. इसे सादे पानी में धोया जा सकता है. धोने से पहले 30 मिनट के लिए पानी में भिगोना चाहिए. इसे पहले छाया में और फिर धूप में सुखाना होता है. इसे अगले उपयोग से पहले दो दिनों के लिए इस्त्री किया जाना चाहिए. लाभ के मामले में, ईशाना अपने पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी नैपकिन के माध्यम से प्रति माह लगभग 5,000 रुपये कमाती हैं. उन्होंने कहा,अब मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को सूती कपड़े से सैनिटरी पैड बनाने के बारे में जागरूक करना चाहती हूं.

सलीम , हैदराबाद और केरल के व्यवसायी ईशाना से भी अपने क्षेत्रों में पैड लाने के लिए संपर्क कर रहे हैं. अपनी योजनाओं के बारे में बात करते हुए, ईशाना ने कहा कि भविष्य में वह बिस्तर पर पड़े बीमार बुजुर्गों और बच्चों के डायपर भी पैड बनाएंगी .

नोट: लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर हैं और एमएसओ ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं.

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