अमर उजाला और दैनिक जागरण हिन्दी प्रदेश के दो बड़े अख़बार हैं। इन दोनों अख़बारों के मुख्य हिस्से में 12-12 पन्ने होते हैं। तब भी भारत जोड़ो यात्रा की ख़बर के लिए जगह नहीं मिलती है। दैनिक जागरण में कोई ख़बर और तस्वीर नहीं है। अमर उजाला में सिंगल कॉलम के चौथाई हिस्से में एक सूचना है कि सोनिया गांधी यात्रा में शामिल होंगी। इस तरह से हिन्दी के अख़बारों से कांग्रेस की यात्रा को ग़ायब कर दिया गया है।
इस तरह से मीडिया को विपक्ष को ग़ायब रखता है ताकि जनता हर दिन याद रखें कि वह असहाय है। विकल्प नहीं है।गोदी मीडिया विपक्ष और लोकतंत्र का हत्यारा है। उसने विपक्ष को अदृश्य कर दिया है। मेरा शुरू से यह मानना रहा है कि जो भी विपक्षी दल अगर गोदी मीडिया से नहीं लड़ता है तो वह लोकतांत्रिक भूमिका नहीं निभा रहा है। विपक्ष के कई नेता अब मीडिया को लेकर जनता को जागृत करने लगे हैं मगर उनका रवैया बहुत ढीला है। ट्विटर पर ट्विट कर अपना काम समझ लेते हैं।
जयराम रमेश ने गोदी मीडिया और अर्ध गोदी मीडिया के झूठ को चुनौती दी है मगर अपर्याप्त है। कई ऐंकरों को माफ़ी माँगनी पड़ी है लेकिन केवल ट्विटर पर हल्ला करने से दुनिया को पता नहीं चलता। इसकी ख़बर भी कहीं नहीं छपती है। आप कह सकते हैं कि जयराम रमेश ने गोदी मीडिया की हरकतों से लोहा लेना शुरू किया है लेकिन उनका ध्यान बहुत छोटी लड़ाई पर है। वे मीडिया के उस दानव स्वरूप को नहीं समझ पा रहे हैं, जिसके बारे में उन्हीं के नेता राहुल गांधी ने कई बार बेहतर तरीक़े से बताया था। पदयात्रा की घोषणा के लिए बुलाई गई पहली प्रेस कांफ्रेंस और रामलीला मैदान में राहुल ने साफ़ कहा था कि मीडिया ने जनता की आवाज़ और विपक्षी आवाज़ ग़ायब कर दी है इसलिए पदयात्री बन रहे हैं। कांग्रेस ने उनके इस बयान को ही ग़ायब कर दिया।
जयराम रमेश को हिन्दी के अख़बारों और चैनलों का सही आँकलन करना चाहिए, उसके बाद बयान देते कि मीडिया भारत जोड़ो यात्रा को कवर कर रहा है। यह यात्रा ग़ायब कर दी गई है। मेरी नज़र में गोदी मीडिया और अर्ध गोदी मीडिया ने भारत जोड़ो यात्रा को प्रतिबंधित कर दिया है। टीवी चैनलों से भी यात्रा ग़ायब है। एक चैनल तो और भी चालू है। उसके मेन चैनल पर यात्रा नहीं है लेकिन यू ट्यूब पर दिखाता रहता है। इसी तरह से सबने ख़ानापूर्ति की है। बाक़ी जयराम रमेश ज़्यादा समझदार हैं।
अगर यही पदयात्रा बीजेपी की होती और अमित शाह 26 दिनों से पैदल चल रहे होते तो उसका कवरेज़ देखते। हर पन्ने पर अमित शाह के पैदल चलने और आशाओं के नव युग और नव संचार से लैस ख़बरें और विश्लेषण भरे होते। राहुल गांधी की तरह अमित शाह या नरेंद्र मोदी बारिश में भीगते हुए भाषण दे रहे होते तो उस तस्वीर को पूरे पन्ने पर छापा जाता। उन्हें अवतार बताया जाता। टीवी चैनल दिन रात चला रहे होते कि मोदी कितने महान हैं। कांग्रेस को सीखना चाहिए। बारिश होती रही और रैली को संबोधित करते रहे।
जब तक हर नागरिक, हर नेता हज़ारों करोड़ रुपये की ताक़त से चलने वाले मीडिया से नहीं लड़ेगा, हर दिन सवाल नहीं करेगा तब तक इस लोकतंत्र में संतुलन नहीं आएगा। बिना शक्ति संतुलन के लोकतंत्र तानाशाही में बदल जाता है।
साभार: रविश कुमार