‘पर्दे का विरोध करने वाले कैसे भूल जाते है कि जीवन के हर क्षेत्र में पर्दा है’

आप लैटरीन का दरवाजा बंद करते हैं, घर पहुँचते ही डोर बंद कर लेते हैं। पैसे वाले हैं तो AC2 का टिकट लेते हैं और केबिन का पर्दा टान देते हैं। घर के दरवाजे और खिड़की में पर्दा लगाते हैं।

घर बनाने का महत्त्व पुर्ण कन्सेप्ट ही है के आप पर्दे में रहें और आप क्या कर रहे हैं कोई दुसरा ना देखे। कोई बिना दस्तक दिये घुस जाये तो आप चीढ जाते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में पर्दा है। अन्य से पर्दा आप का निजी अधिकार माना जाता है।

जिस तरह से चहारदिवारी एक घर है, हमारा शरीर हमारे अस्तित्व के लिए एक घर है। अगर चहारदीवारी से बने घर में किसी का घुसना यानी पर्दा हटाने का अधिकार देना आप की मर्जी है, तो किसी के शरीर से परदा हटाना दुसरे की मर्जी कैसे हो सकती है ?

घर उखाड़ कर साथ ले कर नही चल सकते और बाहर खुले में निकलना होता है तो पर्दे का प्रारूप कपड़े पर आ कर टिक जाता है। दरवाजा बंद रखने वाले को आप यह नही कह सकते के तुमहे दरवाजा खुला रखना होगा, सुरक्षा के दृष्टी से भी नही।

अगर कोई भी महिला या पुरूष अपने शरीर के किसी अंग को अन्य व्यक्ति को दिखाने में सहज नही है तो किस आधार पर उस पर ज़बर्दस्ती की जा सकती है, या उसका मजाक भी उड़ाया जा सकता है ? जबकी सभी लोग कहीं ना कहीं पर्दा ही तो करते हैं ?

साभार: शादान अहमद

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