अड़ानी पर जितनी भी किताबें हैं वे सब Australia के पत्रकारों ने लिखी हैं। अड़ानी पर भारत में, ख़ासकर हिंदी में सिर्फ़ ये खबरें मिलती हैं कि वे आज नौवें नम्बर पर आ गए, आज दूसरे पर आ गए।
अंग्रेज़ी में कुछ लोगों ने वाक़ई मेहनत की, लेकिन अड़ानी ने उनकी नौकरियाँ खा लीं। क्योंकि जब उनका उदय हुआ, उनके साथ ही एक राजनेता का उदय भी हुआ। पूँजीपतियों ने कांग्रेस के वक्त भी बहुत खेल किए हैं, लेकिन अब वे पूरे खेल ग्राउंड ही बन चुके हैं।
एक वक्त था इस देश में जनलोकपाल की बात होती थी, राइट to रिकॉल की बात होती थी। डिमॉक्रेसी की जगह, डायरेक्ट डिमॉक्रेसी की बात होती थी। समाजवाद पर भी एक वैचारिक जगह थी। लेकिन देश इन सब को पीछे छोड़ आया। अब सिर्फ़ तमाशा बचा है। तमाशे में जोकर हैं, बाक़ी दर्शक हैं।
TV अडानी पर खबर करती ही नहीं. अल्टरनेटिव मीडिया पर इतने केस ठोक रखे हैं कि हेडलाइन में भी उनका नाम नहीं लिखा जाता. मुझसे मेरे दोस्तों द्वारा कहा जा रहा है कि अडानी पर सीरीज करोगे तो उनकी टीम तुम्हें कुछ नहीं कहेगी, क्योंकि तुम कुछ नहीं हो उनके सामने, वो सीधे Youtube को नोटिस भेजेगी कि तुम्हारे Platform पर ये चीज़ चल रही है और कुछ कमी निकालकर चैनल डिलीट करा देगी;.
चैनल और बन जाएँगे. सीरीज तो आएगी. मीडिया में सबको मालुम है कि उनपर लिखने के कारण किस-किस बड़े पत्रकार की नौकरी खाई गई. अडानी का नाम आते ही मीडिया चैनल उनका नाम हटवा देते हैं. सभी पत्रकार इस बात से वाकिफ हैं, मैं अपनी नौकरी खुद के यहाँ करता हूँ., मेरी नौकरी ये क्या खाएंगे. सीरीज ऐसी बनाऊंगा जो याद रखी जाए.
ये अब तक की सबसे बड़ी सीरीज आएगी जिसमें छः से दस वीडियो आएंगी. ज्यादा आएं तो कह नहीं सकता. लेकिन अडानी पर वीडियोज में ये अब तक की सबसे बड़ी सीरीज होगी. वैसे अडानी पर काम ही कहाँ हुआ है. गिने-चुने आर्टिकल लिखे हैं कुछ हिम्मत वाले पत्रकारों ने बाकी सब उनकी गोद में सोये हुए हैं.
(यह लेख श्याम मीरा सिंह की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)