-काविश अज़ीज़
लखनऊ | लखनऊ की पुरानी आबादी के एक मोहल्ले में जगत नारायण रोड पर हम ढूंढ रहे थे उस महिला के चेहरे को जो पिछले दिनों नकाब पहने स्विग्गी का बैग अपनी पीठ पर लादकर डालीगंज के इलाके से गुज़र रही थी. किसी ने उस महिला की तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर डाल दिया और देखते ही देखते तस्वीर वायरल हो गई.
तस्वीर वायरल होने के बाद हर संवेदनशील व्यक्ति को स्विग्गी का वजनी बैग पीठ पर लादे इस महिला से हमदर्दी होने लगी साथ ही यह जानने की जिज्ञासा भी बढ़ गई कि आख़िर वह महिला कौन है. लिहाज़ा हम भी महिला को ढूंढते हुए उनके घर तक पहुंच गए.
लखनऊ में बुर्का पहने स्विग्गी का बैग लिए महिला की तस्वीर को लेकर चर्चा हो रही थी, लोगों के मन में सवाल उठ रहा था कि आख़िर बुर्का पहने स्विगी का बैग लिए महिला आख़िर कौन है? तस्वीर की पड़ताल में एक परिवार के संघर्ष की कहानी सामने आई. इस कहानी में दुख है, पीड़ा है और एक महिला के आत्मविश्वास है की दास्तान है.
महिला का नाम रिज़वाना है, उनके 4 बच्चे हैं, पति 3 साल से लापता हैं और रिज़वाना पीठ पर बैग लादे परिवार का पेट पालने के लिए फेरी करती हैं और डिस्पोज़ल गिलास वगैरह बेचती हैं.
हम एक डेढ़ फीट की सकरी गली में रिज़वाना के घर पहुंचे, रिज़वाना के 10×10 के कमरे में पूरी जिंदगी की गृहस्थी मौजूद थी, उजड़ा और फैला कमरा उनकी मजबूरी और गुरबत की दास्तान बयान कर रहे थे.
बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो रिज़वाना ने इंडिया टुमारो को बताया कि उनके शौहर 3 साल से घर नहीं लौटे. पहले रिक्शा चलाते थे रिक्शा चोरी हुआ फिर भीख मांगने लगे और फिर नौबत आई कि वह कभी लौटे नहीं घर.
पति के लापता होने के बाद घर की जिम्मेदारी रिज़वाना पर आ गई. चार बच्चों को पालना था, एक बेटी की शादी कर दिया दूसरी बेटी चौक की एक दुकान पर काम करती है. तीसरी बेटी और एक बेटा छोटे हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं.
रिजवाना सुबह में चौका बर्तन करती हैं और दोपहर में डिस्पोजल ग्लास और कप बेचने का काम करती हैं. कुल मिलाकर महीने में 5 से 6 हज़ार कमा लेती हैं जिससे उनके परिवार का ख़र्च चलता है.
रिज़वाना किराए के घर में नहीं है और एक कमरा ही सही उनका अपना है. हमने उनकी वायरल तस्वीर का जिक्र किया और स्विग्गी की नौकरी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि, “वह स्विग्गी में नौकरी नहीं करती”, तो फिर यह बैग उनके पास कहां से आया?
दरअसल एक दिन वो डालीगंज पुल के पास से गुज़र रही थीं, वहां एक आदमी स्विग्गी का बैग बेच रहा था, चूंकि रिज़वाना डिस्पोजल कप और ग्लास बेचने का काम करती हैं तो उन्हें मज़बूत बैग की ज़रूरत थी. उन्होंने यह बैग खरीद लिया और इसी में अपना सामान लादकर घूमने लगी.
रिजवाना की बेटी बुशरा ने इंडिया टुमारो से बात करते हुए बताया कि, उनकी मां ने बहुत मशक्कत के साथ उन्हें पाला पोसा है उन्हें अपनी मां पर गर्व है. वह हमेशा अपनी मां का साथ देना चाहती हैं.
रिज़वाना को इस बात का सुकून है कि वह मेहनत के पैसे से अपने बच्चों की परवरिश कर रही है, बहुत फख्र से वो कहती हैं कि कम से कम किसी से मांग कर तो गुज़ारा नहीं चल रहा है.
साभार: इंडिया टुमारो