हरियाणा में शिक्षक भर्ती को लेकर हाईकोर्ट का फ़ैसला आया है,अगर नीति ग़लत थी, भ्रष्टाचार हुआ होगा तो ऐसा करने वालों के यहाँ ED जी आप छापा कब डालेंगे? क्यों नियमों का पालन नहीं हुआ? और क्यों दूसरे लोगों ने इसका फ़ायदा उठाया? ऐसे मामलों में क्या केवल नीति की ही ग़लती होगी, कोई खेल नहीं होगा? 2017 में नियुक्ति होती है। पाँच साल पढ़ाने के बाद इन्हें हटाने का आदेश आया है। सैंकड़ों शिक्षक हैं। ये सभी किस व्यवस्था का लाभ उठा रहे थे और सभी क्यों उसका शिकार हुए हैं?
इन बातों से किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता कि इनके घरों में कैसी मारामारी मची होगी। कितना तनाव होगा।मुझे तो यह कहानी समझ नहीं आ रही लेकिन कोई भी चैन से नहीं है। यह सोच रहा हूँ कि क्या निकाले जाने वाले शिक्षक फ़ेसबुक पर और व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में धार्मिक उन्माद वाले पोस्ट साझा नहीं करते होंगे,कोई नहीं कर रहा है तो फिर ये चल कैसे रहा है? ऐसे शिक्षकों को हटाए जाने के फ़ैसले पर क्या। लगता होगा? कितनी मेहनत से सभी ने मिलकर विपक्ष को ख़त्म किया, मीडिया को ख़त्म किया, तो अपनी मेहनत का नतीजा देखकर कैसा लग रहा है?
इस पोस्ट पढ़ कर आशान्वित न हों। मैं बस यहीं तक के लिए लिख रहा हूँ। हम भी परेशानी झेल रहे हैं। हर जगह की स्टोरी करने के संसाधन नहीं हैं और न हम कर सकते हैं। न कोई देखता है। सबको धर्म का गौरव देखना है और मूर्खता की बहस। तो देखिए भाई। मैंने कई बार कहा है कि पत्रकारिता ख़त्म हो जाएगी, राजनीति से मुद्दे ख़त्म हो जाएँगे तो नुक़सान केवल हम जैसे पत्रकारों का नहीं होगा बल्कि जनता का भी होगा।
आज ही बिलासपुर से एक परेशान नौजवान का फ़ोन आया था।रेलवे भर्ती बोर्ड को लेकर। उसकी आवाज़ टूटी हुई थी। मुझे आख़िरी उम्मीद बता रहा था। सवा अरब से अधिक की आबादी में अगर मैं आख़िरी उम्मीद नज़र आ रहा हूँ तो यह मेरे लिए शर्म की बात है।काफ़ी बात की लेकिन उससे यही कहा कि मैं कुछ नहीं कर पाऊँगा। अफ़सोस ही होता है।
जो चार पाँच लोग पत्रकारिता कर रहे हैं, वो देश की सारी ख़बरें नहीं कर सकते हैं। हम लोग बिना ब्रेक के लगातार काम करते हैं। सुबह से लेकर रात तक। इसकी ज़रूरत नहीं होती अगर बाक़ी अख़बार और चैनल काम करते। आठ साल से कहता रहा कि पत्रकारिता को ख़त्म किया जा रहा है।आपको लगा कि मोदी का विरोध कर रहा हूँ।कोई सुनने को तैयार नहीं। धर्म के मुद्दे की सनक सब पर सवार हो गई थी। जो भी बचे हुए पत्रकार हैं, जिन्हें गिना जा सकता है और वो गिनती इस देश में पचास की भी नहीं होगी, वे सारे अब ख़बरों की बातें कम जेल की बातें ज़्यादा करते हैं। जेल से बचने और भेज दिए जाने की बातें करते हैं।
आप नौजवानों ने इस हालात को बनाने में काफ़ी मेहनत की है। बहुत बड़ी भूमिका है।
आपने यह काम पूरे होश में किया है। इसलिए नौकरी न मिले, मिल जाने के बाद निकाल दिए जाएँ, धांधली, परीक्षा न हो, रिज़ल्ट न निकलें, अब आपको ही सहना है। सह भी लेंगे। मैं जानता हूँ कि धर्म से बड़ा कोई मुद्दा नहीं।आपको भी ईमानदारी से स्वीकार करना चाहिए कि धर्म को लेकर जो राजनीतिक सुख मिला है वो आपको कोई नहीं दे सकता। तो इतने बड़े सुख के लिए नौकरी और रिज़ल्ट को मारिए गोली। मस्ती कीजिए। दुआ कीजिए कि जो भी दो चार पत्रकार बचे हैं, वो ख़त्म हो जाएँ ताकि आप और मस्ती कर सकें। कोई आपकी मस्ती में बाधा न डाले।
कुछ दिनों के बाद ऐसे मुद्दों और ख़बरों की क्लिपिंग को पोस्ट करना भी रिस्की हो जाएगा। पता नहीं कौन अख़बार की ख़बर को ही फेक बता कर केस कर दे। आप अख़बारों को देखिए। खोज कर लाई गईं ख़बरें कम होती हैं। होती भी हैं तो उसमें सरकार और प्रशासन का जवाब नहीं होता है। जनता को भी फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
एक गाना चाहें तो सुन सकते हैं क्रांति फ़िल्म का। वो जवानी जवानी नहीं, जिसकी कोई कहानी न हो। भारत के युवाओं, तुम्हारी कोई कहानी नहीं है। बाक़ी तुम्हारी जवानी भी किसी काम की नहीं।