शव के साथ प्रदर्शन करना अपराध कैसे हो सकता है? इस देश में ग़रीब और कमज़ोर के अधिकारों पर हर दिन हमला हो रहा है। अगर हाथरस केस में या लखीमपुर खीरी केस में या हरिद्वार केस में अगर लोग प्रदर्शन न करते तो क्या पुलिस आसानी से काम करती? लोग कैसे हर बात पर आँखें मूँद लेते हैं?
अब कोई ताकतवर आराम से लाश उसी वक्त ग़ायब करवा देगा, पोस्ट मार्टम रिपोर्ट मैनेज कर देगा। दोबारा पोस्ट मार्टम का विकल्प समाप्त हो जाएगा। पुलिस आएगी और कहेंगी कि पहले अंतिम संस्कार कीजिए।
आख़िर न्याय माँगने के लिए प्रदर्शन को कैसे आपराधिक बनाया जा सकता है? उसकी जगह पुलिस और न्याय व्यवस्था बेहतर कर दी जाती तो लोगों को शव के साथ प्रदर्शन करने की ज़रूरत नहीं होती।