कारगिल विजय दिवस के 22 साल पूरे हो गए है। देश कारगिल विजय के यौद्धाओं को नमन कर रहा है। इन यौद्धाओं में एक नाम कैप्टन हनीफुद्दीन का भी है। कैप्टन हनीफुद्दीन ने कारगिल युद्ध में बड़े ही शौर्य और पराक्रम का परिचय दिया था। भारतीय सेना के राजपूताना रेजिमेंट के कैप्टन हनीफ उद्दीन ने सियाचिन ग्लेशियर की सबसे ऊंची चोटी प्वाइंट 5590 (करचन ग्लेशियर) पर बैठे दुश्मनों को वहां से मार भगाया था।
युद्ध के शुरू होने से पहले कैप्टन हनीफ उद्दीन कारगिल के तुरतुक इलाके में तैनात थे। युद्ध के दौरान बर्फ की चादर से ढकी कारगिल की चोटियों पर कैप्टन हनीफ उद्दीन ने हथियार खत्म होने के बावजूद भी लड़ाई जारी रखी। उन्होंने अंतिम सांस तक दुश्मनों मुकाबला किया। कारगिल युद्ध जीतने के बाद भारतीय सेना ने कारगिल के तुरतुक सेक्टर का नाम हनीफुद्दीन सब सेक्टर रखा है।
कारगिल युद्ध में 7 जून को शहीद हुए कैप्टन हनीफुद्दीन और उनके साथियों का पार्थिव शरीर भारतीय सेना वापस नहीं ला पाई थी। क्योंकि दुश्मन लगातार ऊपर से फायरिंग कर रहा था। लेकिन 11वीं बटालियन राजपूताना रायफल ने जब दुश्मनों को मार भगाया इसके बाद अपने शहीदों का पार्थिव शरीर वापस ढूंढ़कर लाने के लिए ऑपरेशन अमर शहीद शुरू किया। आखिरकार 17 जुलाई को शहीदों का पार्थिव शरीर करचन ग्लेशियर से ढूंढ़कर वापस लाया जा सका। इन उपलब्धियों के लिए यूनिट को सम्मानित किया गया।
शहीद कैप्टन हनीफुद्दीन की स्मृति में पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फेज- 1 में सड़क और स्कूल का नाम उनके नाम पर रखा गया है। भाई नफीस ने बताया कि उन्होंने कैप्टन हनीफुद्दीन के नाम पर साल 2000 में कुल्लू में भी गरीब बच्चों के लिए एक विद्यालय खोला है।