तुर्की यात्रा के दौरान मुस्लिमों से हुई प्रभावित तो ब्रिटिश महिला ने अपना लिया इस्लाम

दो साल पहले तुर्की दौरे के दौरान इस्तांबुल में प्रतिष्ठित ब्लू मस्जिद (जिसे सुल्तानहेम मस्जिद के रूप में भी जाना जाता है) के परिवेश से प्रभावित होकर एक युवा ब्रिटिश महिला ने इस्लाम के बारे में अपना शोध शुरू किया और बाद में इस्लाम धर्म अपना कर मुसलमान बन गई। उन्होने अपना जीवन अब इस्लाम के लिए समर्पित कर दिया।

उन्होने कहा, “मुसलमान बनने से पहले, मेरा कोई धर्म नहीं था। मेरा मानना ​​था कि ईश्वर एक है। मुझे याद है कि एक बच्चे के रूप में मैं हमेशा ईश्वर से बात करती थी।” रोज़ली ने कहा कि उसके माता-पिता “धार्मिक नहीं थे।” उन्होने कहा, इस्लाम को अपनाने से पहले वह कभी किसी धार्मिक व्यक्ति को नहीं जानती थी।

रोज़ली ने कहा, “जब मैं तुर्की आई, तो मेरा धर्म खोजने का कोई इरादा नहीं था। मैं Google पर गई और मैंने पाया कि मेरे करीब एक नीली मस्जिद है और मैंने सोचा कि शायद मैं इसे देख सकती हूँ।” रोज़ली ने कहा कि वह “वास्तव में डरी हुई” थीं क्योंकि मुसलमानों के बारे में उनकी “अच्छी राय नहीं” थी, क्योंकि मुस्लिमों को लेकर उनकी सारी जानकारी पश्चिमी मीडिया से हासिल की हुई थी। “इस्लाम के बारे में मेरी यही एकमात्र राय थी।”

उन्होने आगे बताया, मस्जिद जाने से पहले, वह एक स्थानीय दुकान में गई और एक हिजाब, या सिर ढकना खरीदा, क्योंकि वह “सम्मानित होना चाहती थी।” उन्होने कहा, “मैं अपने बाल काटकर किसी को नाराज नहीं करना चाहती थी। मुझे लगा कि शायद लोग मुझ पर नाराज होंगे। इसलिए मैंने [मस्जिद] जाने के लिए हिजाब खरीदा।”

रोज़ली ने कहा कि इस दौरान उन्हे इस्लाम पर धार्मिक सामग्री मिली, लेकिन उस समय वह नहीं जानती थी कि इसका क्या मतलब है। “और मुझे यह भी नहीं पता था कि इसका उच्चारण कैसे किया जाता है।” रोज़ली ने कहा, एक बार जब मैंने ब्लू मस्जिद में प्रवेश किया, मैंने तस्बीहली, और कुछ दुआ करना शुरू कर दिया।

उन्होने कहा, “एक घंटे के लिए मैं बस तस्बीह को लेकर बैठी रही। मैं बस मस्जिद के चारों ओर देख रही थी। यह इतनी सुंदर और  शांतिपूर्ण थी, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था। और मैं अपने सामने के क्षेत्र में लोगों को नमाज अदा करते हुए देख रहा थी। मैं मस्जिद के अंदर की सुंदरता और शांति से बहुत अभिभूत थी। कोई मुझ पर चिल्ला नहीं रहा था, कोई मेरे लिए बुरा नहीं था, मैं बहुत हैरान थी।”

रोज़ली ने कहा कि उसने होटल के रास्ते में मस्जिद से निकलने के बाद पवित्र कुरान की प्रतियां ढूंढीं। उन्होने कहा, मैंने कुरान का एक अंग्रेजी अनुवाद खरीदा और इसे अपने होटल के कमरे में पढ़ना शुरू कर दिया। रोज़ली ने कहा कि वह ब्रिटेन लौटने के बाद भी पूरी किताब खत्म होने तक कुरान पढ़ती रही।

उन्होने आगे बताया, “मुझे कुछ महीने लगे, और उस दौरान मैंने इस्लाम का बहुत अध्ययन किया, साथ ही साथ बहुत सारे व्याख्यान भी देखे। और कुछ महीनों के बाद मैंने अपना शाहदा [कालिमा] घोषित कर दिया, और मैं एक मुसलमान बन गई। अल्हम्दुलिल्लाह [अल्लाह की स्तुति करो], यह मेरी यात्रा थी।”

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