मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
कश्मीर की दो बेटियों ने बचपन में जिस समस्या का सामना किया उसका ही समाधान निकाल दिया. उत्तरी कश्मीर की दो सिविल इंजीनियरों बेनित-उल-इस्लाम और उसकी दोस्त शबनम मसूद को जैव-चिकित्सा कचरे से सड़कों के निर्माण के लिए एक वैकल्पिक तरीका प्रस्तावित करने पर पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित किया गया है.
वो फिलहाल नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (एनबीसीसी) के प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं. उन्होंने बताया, यह विचार न केवल हमारी सड़कों को किफायती बनाएगा, जैव चिकित्सा अपशिष्ट को निपटाने का सबसे सुरक्षित तरीका भी साबित होगा.अभी अपने देश में प्रतिदिन 146 टन मेडिकल कचरा निकल रहा है.
मगर कश्मीर की दोनों बेटियों के शोध से इस मसले का समाधान निकल सकता है. उनके अनुसार, सड़क निर्माण में बायोमेडिकल कचरे का उपयोग बर्फीले क्षेत्र में सड़क निर्माण के लिए सबसे अच्छे और बेहतरीन कदमों में से एक है. हर साल करोड़ों रुपये सड़क विकास पर खर्च किए जा रहे हैं. मगर सर्दियों के दौरान बर्फ के कारण क्षतिग्रस्त हो जाते हैं.
उनके मुताबिक, हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कुछ वैकल्पिक तरीकों को खोजने के लिए प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है. हमने एक व्यक्ति के रूप में सड़क निर्माण के लिए कुछ वैकल्पिक तरीके खोजे है.
उन्होंने कहा,हमने बचपन से कश्मीर की सड़कें देखी हैं. यह बात हमेशा हमारे दिमाग में रहती थी. जब भी हम कश्मीर की सड़कों पर एक साथ यात्रा करते तभी सोचते एक दिन सिविल इंजीनियरिंग स्नातक के रूप में हम इसका समाधान जरूर निकालेंगे.
बहुत सारे शोध और विश्लेषण के बाद, हमारा समाधान अंततः यह है कि बायोमेडिकल कचरे का उपयोग कश्मीर के सड़क निर्माण में हमारी सड़कों को किफायती बनाने के लिए किया जा सकता है. शोध में 10 पेपर प्रकाशन शामिल हैं और इसे विभिन्न सम्मेलनों में सर्वश्रेष्ठ परियोजना के रूप में सम्मानित किया गया.
हाल ही में विज्ञान के वेब, एआईसीटीई द्वारा प्रायोजित सम्मेलन ने इस नवोन्मेषी विचार को नवप्रवर्तन का सर्वोत्तम विचार घोषित किया. दो इंजीनियरिंग लड़कियों को एआईसीटीई द्वारा भारत के सबसे कम उम्र के शोधकर्ता के रूप में सम्मानित किया गया है.
सिविल इंजीनियरिंग के व्यावहारिक क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट अनुभव के कारण, बेनित-उल-इस्लाम को एआईसीटीई से सदस्यता के साथ, सम्मेलन में कुशल इंजीनियर और सर्वश्रेष्ठ परियोजना प्रबंधन पुरस्कार का पुरस्कार मिला.
अनुसंधान क्षेत्र के अलावा उन्हें एनएचपीसी और एनबीसीसी जैसी विभिन्न परियोजनाओं में काम करने का अनुभव है.
देश की समस्या मेडिकल कचरा
बायोमेडिकल कचरे की निरंतर बढ़ती मात्रा चिंता का विषय बन गए हैं. भारत में एक साल में 45 हजार टन बायोमेडिकल वेस्ट निकला है. चूंकि तमाम बंदिशों और कानूनों के बावजूद इसका निपटान सही ढंग से नहीं हो रहा है, इसलिए मेडिकल कचरे फैलने वाले इंफेक्शन के खतरे भी बढ़े हैं.
बायोमेडिकल कचरे के इजाफा ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, भारत प्रतिदिन लगभग 146 टन बायोमेडिकल कचरा उत्पन्न कर रहा है. पिछले एक साल में 45 हजार टन कचरा निकला है.
जानलेवा है कचरा
बायो मेडिकल वेस्ट में पीपीई किट, मास्क, गलव्ज, पैथोलॉजिकल कचरा, प्लास्टर ऑफ पेरिस, ब्लड बैग, यूरिन बैग्स, डायलिसिस किट्स, आईवी सेट्स, केमिकल कचरा जैसी कई चीजें शामिल हैं. बायोमेडिकल डिस्पोज नहीं होने पर पर्यावरण के साथ लोगों के लिए भी खतरनाक हो सकता है.
कोविड वेस्ट डिस्पोज के लिए गाइडलाइंस
गौरतलब है कि भारत के सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) ने देशभर में कोविड कचरे को डिस्पोज करने के लिए नई गाइडलाइन तय की है. बोर्ड ने कोरोना मरीजों के इलाज के दौरान पैदा हुए कचरे को इसी गाइडलाइन के तहत डिस्पोज किया जाना है. बोर्ड ने बताया कि फिलहाल भारत में 198 कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित की गई है.
सरकार के नए नियम
सरकार के नियमों के मुताबिक, बायोमेडिकल कचरे को तीन तरह के बैगों में कलेक्ट किया जाना है. इनमें यैलो बैग(जलाने वाला कचरा), रेड बैग (रिसाइकिल वाला कचरा) और व्हाइट बैग (कांच से जुड़ा कचरा) शामिल है. मगर इसका पालन बहुत कम हो रहा है.
साभार: आवाज द वॉइस