बेटियों के सपनों को पंख दे रहा है मुर्शिदाबाद का एक मदरसा

सूफी परवीन। Twocircles.net
मुर्शिदाबाद का एक मदरसा सिर्फ इसलिए चर्चा में है क्योंकि वहां दसवीं पास करने वाली छात्राओं को अब बाहर पढ़ने नही जाना पड़ेगा और वो यहीं 12 वी की पढ़ाई कर सकेगी। इससे पहले ऐसा न् होने पर यहां बहुत सी लड़कियों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी लेकिन अब सैकड़ो लड़कियों की उम्मीदों को पंख लग गए हैं।

सादिया और खुसतारा ग्यारहवीं की छात्रा हैं। सादिया को बास्केटबॉल और फुटबॉल खेलना पसंद है। सादिया खेल के मैदान में और बेहतर करना चाहतीं हैं। दोनों लड़कियाँ अपने मदरसे को 12वीं तक किए जाने पर बेहद खुश हैं। सादिया और खुसतारा से ज्यादा उनके अभिभावक इस पर खुश हैं ।

भारत के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार किए जाने वाले मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) के एक मदरसे की यह कहानी है। बेलडांगा ब्लॉक में स्थित एस के अब्दुर रज़्ज़ाक मेमोरियल मदरसे में पहले दसवीं तक ही पढाई होती थी, अब यहाँ 12 वीं की भी पढाई होने लगी है। पश्चिम बंगाल सरकार की ये पहल इस इलाक़े के लड़कियों के हौसले को नई उड़ान दे रहा है। अब तक लगभग 1200 लड़कियाँ यहां से दसवीं पास करती रही हैं, उनमें से अधिकांश आगे अपनी पढाई नहीं कर पाती थी. ये एक सकारात्मक बदलाव है। अब अधिकांश अभिभावकों की इच्छा है कि उसकी बेटी 12 वीं हर हाल में पूरा कर लें। ये इस इलाके का एक मात्र गर्ल्स स्कूल है जहाँ बारहवीं तक पढाई होती है।

इस संस्था की प्रिंसिपल मुर्शीदा खातून, पश्चिम बंगाल उच्च शिक्षा परिषद का आभार व्यक्त करते हुए कहती हैं कि “इस स्कूल का 11वीं कक्षा का यह पहला बैच है, 240 लड़कियों ने प्रवेश लिया है, जो इस बात को दिखाता है कि मौक़ा मिले तो लड़कियाँ इसे किसी भी हाल में गंवाना नहीं चाहतीं। 122 लड़कियाँ ने आर्ट्स स्ट्रीम में और 118 छात्रों ने साइंस स्ट्रीम में दाखिला लिया है, आगे वह कहती हैं कि “पहले लड़कियों के पास कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि यह ब्लॉक का एकमात्र लड़कियों का स्कूल है। ऐसे में, छात्राओं के माता-पिता के मन में उनकी सुरक्षा को लेकर चिंताए बनी रहती थी। वह नहीं चाहते हैं कि उनकी बेटियां रोज़ बीस किलोमीटर का सफर तय करें। इन चिंताओं के कारण, कई अभिभावक अपनी बच्चियों को कक्षा दस के बाद पढ़ाई छुड़वा देते हैं और उनकी या तो शादी कर दी जाती है या उन्हें घर के काम में लगा दिया जाता है। वह सवाल भरे अंदाज़ में कहती हैं कि “जब तक हम उनके लिए अवसर नहीं बनाएंगे और उन्हें उन अवसरों तक नहीं पहुंचाएंगे,फिर हम उन्हें स्कूल वापस कैसे ला सकते हैं ?”

आयशा ग्यारहवीं में पढ़ती हैं,वह कहती हैं कि” उसकी बड़ी बहन आतिफा की शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी क्योंकि उसे मैट्रिक के बाद पढ़ाई जारी रखने का मौका नहीं मिला। सानिया भी 11वीं कक्षा की ही छात्रा है, कहती हैं कि ये “यह स्कूल मेरे घर के पास है, दूसरा स्कूल,मेरे घर से कम से कम आधे घंटे की दूरी पर है। मैं उस स्कूल में नहीं जा पाऊंगी अब, मैं बिना किसी तनाव के इसी स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रख सकती हूं।” प्रिंसिपल मुर्शीदा कहती हैं कि “इलाके में बारहवीं तक का विद्यालय नहीं था, जिससे कि लड़कियों को उच्च शिक्षा हासिल करने का मौका मिल सके। अधिकतर लड़कियों की शादी बचपन में ही हो जाती है क्योंकि उन तक उच्च शिक्षा की पहुँच नहीं है। उन लड़कियों के पास घर पर कोई काम नहीं होता है। वह समुदाय में किसी तरह का योगदान नहीं कर सकती हैं। वह कहती हैं कि यहां “लड़कियों में कम उम्र में शादी और बाल श्रम को रोकना और खेलों में लड़कियों की भागीदारी को बढ़ावा देना सबसे बड़ी चुनौती थी। हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की हमने महसूस किया कि बारहवीं तक का विद्यालय नहीं होना इसमें एक बड़ी बाधा थी, क्योंकि 10वीं कक्षा के बाद लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं। वह चाहती हैं कि उनकी बेटियां उच्च शिक्षा हासिल करें। लेकिन जब स्कूल उनके घरों से बहुत दूर होता है, तो वह भी बहुत कुछ नहीं कर पाती हैं”।

मुर्शिदाबाद, देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है। यहां पर मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी (67%) हैं। मुर्शिदाबाद में मुस्लिम आबादी की साक्षरता दर 66.59% है जबकि पुरुष साक्षरता 69.95% और महिला साक्षरता दर 63.09% है। लगभग 35% मुस्लिम सामान्य आबादी निरक्षर है जबकि गैर-मुस्लिम निरक्षरता दर जिले में लगभग 25% है,लगभग 43% मुस्लिम बच्चे प्राथमिक विद्यालय में जाते हैं,लेकिन केवल 3% मुस्लिम छात्र ही उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी कर पाते हैं। इतनी अधिक ड्रॉपआउट दर का मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कम माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय हैं।

हिंदी अनुवाद – आसिफ

साभार: twocircles.net

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