“जिन लोगों ने भारत की शरणार्थी नीति को लेकर झूठी अफवाहें फैला कर अपना करियर बनाया है और इसे नागरिकता कानून से जोड़ा है,वे इससे निराश होंगे। भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी कन्वेंशन का सम्मान करता है और सभी को जाति, धर्म या नस्ल की परवाह किए बिना शरण देता है।”
यह केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के ट्विट का हिन्दी अनुवाद है, जो उन्होंने बुधवार की सुबह किया था। उन्होंने दो ट्विट किए थे, जिसका ज़िक्र मैंने किया है, वह दूसरा है। इसे ध्यान से पढ़िए तो मंत्री जी अपनी ही पार्टी की बिरादरी को लेक्चर दे रहे हैं। शरणार्थी नीति को लेकर झूठी अफ़वाह तो उनकी विचारधारा के लोगों ने फैलाई। संसद से लेकर चुनावी मैदान में कहा कि रोहिंग्या का पहाड़ बनाया जा रहा है। रोहिंग्या तो शरणार्थी है ही नहीं। उनके साथ म्यांमार में केवल धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं हुआ है, वे आर्थिक अवसरों की तलाश में भारत आए हैं। रोहिंग्या आतंकी गतिविधियों में शामिल हैं। ये सब बयान किनके हैं, केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी चेक कर सकते हैं।
बुधवार को अपने पहले ट्विट में मंत्री लिखते हैं कि रोहिंग्या शरणार्थियों को दिल्ली के बक्करवाला में फ़्लैट और सुरक्षा दी जाएगी। इस टैग को वे प्रधानमंत्री कार्यालय और दिल्ली पुलिस को टैग करते हैं। दिल्ली सरकार को नहीं करते हैं। ज़ाहिर है, उनके लिए यह फ़ैसला दिल्ली सरकार को बताने के लायक़ भी नहीं है।
इस ट्विट के बाद बवाल होना ही था। क़ायदे से यह फ़ैसला मानवाधिकार के अनुकूल है लेकिन इस विषय को चुनावी राजनीति में ले जाकर तरह-तरह के भूत खड़े कर वोट लेने का फ़ायदा उठा चुकी सरकार फँस गई। इसलिए बहुत देर में योजना बनी होगी कि कैसे केजरीवाल सरकार को घेर कर मुद्दे में कीचड़ पैदा कर दिया जाए ताकि लोगों को ध्यान मूल बिन्दू से हट जाए। दोपहर तक तो समझ नहीं आया कि क्या करें, तब गृहमंत्रालय तीन ट्विट कर मामले की दिशा बदलता है। उन तीनों ट्विट में भी ज़िक्र नहीं है कि दिल्ली सरकार के कहने पर यह फ़ैसला किया गया है। बल्कि दिल्ली सरकार के निर्देश की बात की गई है, आप चाहें तो पढ़ सकते हैं और इस शो में उन सभी का ज़िक्र भी है। यही नहीं, उस समय तक भाजपा सांसद मनोज तिवारी के पास कहने के लिए कुछ नहीं था। जब उनसे सवाल पूछा गया तो लटपटा से गए। कहने लगे कि लगता है कि हरदीप सिंह पुरी का ट्विट हैक हो गया या क्या हुआ है, उन्हें पता नहीं। तो बाद में मामले को सँभालने के लिए दिल्ली सरकार को फँसाने का तरीक़ा निकाला गया जो विश्वसनीय नहीं लगता है।
सरकार ने राजनीति में इतने कीचड़ पैदा कर दिए हैं कि वह अपने फ़ैसले के साथ ही फ़िसल जाती है। क़ायदे से एक उदारवादी और बड़े देश को यह दिल दिखाना चाहिए कि हालात ठीक होने तक किसी को शरण देंगे और जिस देश में किसी के साथ भी नरसंहार हो रहा है, उस देश को टोकेंगे। यही नहीं म्यांमार में ब्रिटिश काल में जो भारतीय गए हैं, उन्हें आज तक नागरिकता नहीं मिली है, उनके साथ भेदभाव हो रहा है। सरकार को उनकी भी बात करनी चाहिए।दिल्ली सरकार को भी शरणार्थी नीति पर अपनी राय बतानी चाहिए। क्या वह भी रोहिंग्या के मसले पर बीजेपी की तरह से सोचती है? इस लड़ाई को इस विभाग के काग़ज़ बनाम उस विभाग के काग़ज़ में बदल कर इस सवाल से बचने का प्रयास नहीं करना चाहिए। मूल बात है कि सरकार फ़्लैट देने जा रही है जो कि एक अच्छा कदम है ।इस स्वागत करते हुए भी उसकी राजनीति और झूठ को लेकर बहस हो सकती है।